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चरिमाए। चाउम्मासे वरिसे यसोहणं पञ्च-कल्लाणं॥५८॥छेयाइमसदहओ मिउणो परियायगब्वियस्सं वियोछेयाईए वितवो जीएण|| गणाहिवइणो य ॥५९॥ जं जं न भणियमिहइ तस्सावत्तीएं दाण-संखेवी भिन्नाइया य वोच्छं छम्मासन्ताय जीएणं ॥६०॥ भिन्नो अविसिट्ठोचिय मासो चउरो य छच्च लहु-गुरूया।निध्विय गाई अट्ठमभत्तन्तं दाणमेएसि ॥६१॥इय सव्वावत्तीओ तवसो नाउं जहक्कम समए। जीएण देज्ज निव्वीइगाइदाणं जहाभिहियं ॥ ६२॥ एयं पुण सव्वं चिय पायं सामन्नओ विणिदिहूँ । दाणं विभागओ पुण दव्वाइ-विसेसियं जाण॥६३॥दव्वं१ खेत्तं २ कालं३ भावं ४ पुरिस५-पडिसेवणाओ६ यो नाउमियं चिय देजा तभ्मत्तंहीणमहियं वा॥६४॥आहाराई दव्वं बलियं सुलहं च नाउमहियं पिादेज्जा हि; दुव्बलं दुल्लहं च नाऊण हीणं पि॥६५॥ लुक्खं सीयल-साहारणं चखेतंभहियं पिसीयम्मिोलुक्खम्भिहीणतयं, एवं कालि वितिविहमि ॥६६॥गिम्ह-सिसिर-वासासुंदेजऽट्ठम-दसम-बारसन्ताई। नाउ विहिणा नवविह-सुयववहारोवएसेणं ॥६७॥ह-गिलाणा भावम्मि देन हट्ठस्स, न 3 गिलाणस्सोजावइयं वा विसहइ, तं देज, सहेज वा कालं ॥६॥ पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽ सहा तह सदाऽसना केईपरिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा यवत्थूणं॥६९॥ तह धिइसंध्यणो भय-संपन्ना तदुभएण हीणा यो आय-प्रोभय-नोभय-तरगा तह अन्नतरगा य ॥७०॥ कप्पट्ठियादओ विय चउरोजे सेयरा समक्खाया।सावेक्वेयर-भेयादओ विजे ताण पुरिसाणं ॥७१॥ जो जह-सत्तो बहुतर-गुणो व तस्साहियं पि देजाहिहीणस्स हीणतरगं, झोसेज व सव्व-हीणस्स ॥७२॥ एत्थ पुण बहुतरा भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया यो जन्तेण जीयमट्ठमभत्तन्तं | ॥श्री जीतकल्प सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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