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॥श्री व्यवहारसूत्रम्॥
'१८२' भाध्ये पीठिकागाथाः, जे भिक्खू मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं '३२२॥१॥ जे भिक्खू दोमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा
अपलिउञ्चिय(प्र०यं) आलोएमाणस्स दोमालियं, पलिउंचिययं आलोएमाणस्स तेमासियो। जे भिक्खू तेभासियं परिहारहाणं | पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिचिययं आलोएमाणस्स तेमासियं पलिचिययं आलोएमाणस्स चाउमासियं ॥३॥ जे भिक्खू | चाउम्मासियं परिहाराणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियोहोजे भिक्खू पंचमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स छम्मासियं, तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा '३४३'५ जे भिक्खू बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउँचियं आलोएमाणस्स दोमासियी। एवं जे भिक्खू बहसोवि दोभासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिञ्चियं आलोएमाणस्स दोमासियं पलिञ्चियं ॥श्री व्यवहारसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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