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||मेहणपडिसेवणपत्ता आवजइ चाउम्भासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं '३८७ ११० नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा असणं|| वा० पढभाए पोरिसीए पडिग्गाहेत्ता चउत्थं पच्छिम् पोरिसिं उवाइणावेत्तए, से य आहच्च उवाइणाविए सिया तं नो अप्पणा भुझेजा नो अन्नेसिं अणुप्पदेजा एगन्तमन्ते बहुफासुए पएसे (थंडिले) पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयत्वे सिया, तं अप्पणा भुञ्जमाणे अन्नेसिं वा दल (अणुप्पदे) माणे आवजड़ चाउभ्मासियं परिहारहाणं उग्घाइयो१११ नो कप्पड निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा असणं वा० परं अद्धजोयणमेराए उवाइणावेत्तए, से य आहच्च उवाइणाविए सिया तं नो अप्पणा भुञ्जेजा नो अनेसिं अणुप्पदेना एगन्तमन्ते बहुफासुए पएसे पडिलेहित्ता पमजित्ता परिवेयवे सिया, अप्पणा भुञ्जमाणे अनेसिं वा दलमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं ४३९।१२। निग्गन्थेण य गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पविटेणं अन्नयरे अचित्ते अणेसणिज्जे पाणभोयणे पडिग्गहिए सिया अस्थि य इत्थ केइ सेहतराए अणुवट्ठावियए कप्पइ से तस्स दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नथि य इत्थ केइ सेहतराए अणुवठ्ठावियए तं नो अप्पणा भुभेजा नो अन्नेसिं दावए (अणुप्पदेग्जा) एगन्ते बहुफासुए पएसे पडिलेहिता पमन्जित्ता परिद्ववेयवे सिया ४६३।१३। जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे अकप्पठियाणं नो से कप्पइ कप्पठियाणं कप्पड़ से अकप्पट्ठियाणं, कप्पे ठिया कप्पठिया अकप्पे ठिया अकप्पट्ठिया '४८६ ११४। भिक्खू य गणाओ अवक्कम इच्छेना अन्नं गणं उवसंपन्जिताणं विहरित्तए नो से कप्पइ अणापुच्छित्ताणं आयरियं वा उवझायं वा ॥ श्री बृहत्कल्पसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित ||
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