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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वाहि। विजुवएसं सुच्चा पच्छा सो कम्म मायर३॥ ३॥ देसं खित्तं तु जाणित्ता, वत्थं पत्तं उवस्सयो संगहे साहवरगं च, सुत्तत्थं च|| निहालई ॥ ४॥ संगहोवामहं विहिणा, न करेइ य जो गणी। सभणं समणिं तु दिक्खित्ता, सामायारि न गा (प्र० निगू) हए ॥५॥ बालाणं जो 3 सीसाणं, जीहाए उवलिंपए।न सम्भं मग्गं गाहेइ, सो सूरी जाण वेरिओ ॥६॥जीहाएवि लिहंतो न भद्दओ सारणा जहिं नथिोडंडेणविताडं तो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥७॥सीसोऽवि वेरिओ सोउ, जो गुरुं नवि बोहए।पमायभइराधत्थं, सामायारीविराहय। |८॥ तुम्हारिसावि मुणिवर ! मायवसगा हवंति जइ पुरिसा। तो को अन्नो अम्हं आलंबण हुज संसारे? ॥९॥ नाणमि दंसणम्मि य चरणमि यतिसुवि समयसारेसु।चोएइ जो ठवेउं गणमष्याणं यसो य गणी॥ २०॥ पिंडं उवहिं च सिज उग्गभउभ्ययाणेसण चारित्तरखणहा सोहितो होइ सचरिती॥ १॥ अपरिस्सावी सम्म समयासी चेव होइ कज्जेसु। सो रक्खइ चक्खंपिव सबालवुड्डा उलं गच्छं ॥२॥सीयावेइ विहारं सुहसीलगुणेहिं जो अबुद्धीओ।सो नवरि लिंगधारी संजमजोए (प्र० सारे ) निस्सारो ॥३॥कुलगामनगररज पयहिअ जो तेस कण अममत्ती सोनवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो॥४॥ विहिा जो उचोएड, सुत्तं अत्थं च गाहएसो धण्णो सो य पुण्णो य, स बंधू मुक्खदायगो॥५॥स एव भव्वसत्ताणं, चक्खुभूए वियाहिए। दंसेइ जो जिणुद्दिटुं, अणुद्वाणं जहट्ठिअं ॥६॥तित्थ्यरसमो सूरी सम्म जो जिणमयं प्यासेइआणं अइक्कमंतो सो कापुरिसोनसप्पुरिसो॥७॥भट्ठायारो सूरी भट्ठायाराणुवेक्खओ सूरी। उभगठिओ सूरी तिन्निवि मागं पणासंति ॥८॥ उम्मग्गठिए सम्भग्गनासए जो अ सेवए सूरी। निअमेणं सो गोयम! अध्यं पाडे । ॥श्री गच्छाचार सूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal
SR No.021032
Book TitleAgam 30 Prakirnaka 07 Gacchachar Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Prakashan
Publication Year2005
Total Pages23
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size7 MB
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