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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्ताणए वा जाव दुखिआए दुक्खिओ भवइ ।९थिरजायंपि हुं रक्खइ सम्म सारक्खई तओ जणणी संवाहई तुयट्टई रक्खइ गब् || च अय्यं च॥८॥अणुसुयइ सुयंतीए जागरमाणीए जागरइ गब्भो। सुहियाए होइ सुहिओ दुहिआए दुक्खिओ होइ॥९॥उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणओऽवि से नत्थि । अहिऽद्विभिजनहकेसमंसुरोमेसु परिणामो ॥ २०॥ आहारो परिणामो उस्मासे तह य चेव नीसासो। सव्वपएसेसु भवई कवलाहारो य से नित्थ ॥१॥ (प्र० एवं बुदिभइगओ गब्भे संवसइ दुक्खिओ जीवो। परमतभिसंधयारे अमेझभरिए पएसंमि ॥१॥) आउसो! तओ नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउण्हं माया अन्नयरं पयायइ, तं०-इत्थिं वा इत्थिरूवेणं पुरिसंवा पुरिसरूवेणं नपुंसगंवा नपुंसगरूवेणं बिंबं वा बिंबरूवेणं अप्पं सुकं बहु उउयं, इत्थीया तत्थ जायई। अयं उउयं बहुं सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायइ ॥ २॥ दुण्हंपि रत्तसुकाणं, तुल्लभावे नपुंसओ। इत्थीओयसमाओगे, बिंब (वा) तत्थ जायइ॥ ३॥ १०॥ अहवणं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छइ संममागच्छइ, तिरियमागच्छइ विणिधायमावजइ ।११। कोई पुण पावकारी/ बारस संवच्छराई उकोसी अच्छइ उ गब्भवासे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥ ४॥ जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो। तेण दुक्खेण संमूढो, जाई सरइ नऽप्पणो ॥५॥विस्सरसरं रसंतोअह सो जोणीमुहाउ निष्फिडइमाऊए अपणोऽविय वेयणमउलंजणेमाणे॥ ६॥ गब्भघरयम्मि जीवो कुंभीपागम्मि नरयसंकासे।वुच्छो अमिझमझे असुइयभवे असुइयंमि ॥७॥ पित्तस्स य सिंभस्स य सुक्कस्स य सोणियस्सऽविय मझे। मुत्तस्स पुरीसस्स य जायइ जह वच्चकिमिउव्व॥ ८॥ तं दाणिं सोयकरणं के रिसयं होइ तस्स जीवस्स?|| श्री तन्दुलवैचारिक सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021030
Book TitleAgam 28 Prakirnaka 05 Tandul Vaicharik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages37
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size7 MB
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