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॥ श्री तन्दुलवैचारिक सूत्रं ॥
निज्जरियजरामरणं वंदित्ता जिणवरं महावीरं । वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥ १ ॥ ४४८ ॥ सुणह गणिए दस दसा वासस्याउस्स जह विभज्जति। संकलिए (प्र० वोगसिए) वाससए जं चाऊ सेसयं होइ ॥ २ ॥ जत्तियमित्ते दिवसे जत्तिय राई मुहुत्त ऊसासे । गुटभि वसईवो आहार विहिं च वोच्छामि ॥ ३ ॥ (द्वारगाथा) दोन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरिं चेव । गब्र्भभि वसई जीवो अद्धमहोरत्तमन्नं चएए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गन्भवामि। हीणाहिया उ इत्ती उवधायवसेण जायंति ॥ ५ ॥ अट्ठ सहस्सा तिन्नि उ सया मुहुत्तीर्ण पण्णत्रीसा या गब्भगओ वसड़ जीवो नियमा हीणाहिया इत्तो ॥ ६ ॥ तिन्नेव य कोडीओ चउदस य हवंति सयसहस्साइं । दस चेव सहस्साइं दोन्नि सया पन्नवीसा ॥ ७ ॥ उस्सासानिस्सासा इत्तिअमित्ता हवंति संकलिया । जीवस्स गब्भवासे नियमा हीणाहिआ इत्तो ॥ ८ ॥ आउसो ! इत्थीए नाभिहिट्ठा सिरादुगं पुण्फनालियागारं । तस्स य हिट्ठा जोणी अहोमुहा संठिया कोसा ॥ ९ ॥ तस्स य हिट्ठा चूयस्स मंजरी तारिसा उ मंसस्स । ते रिउकाले फुडिया सोणियलवया विमुंचति ॥ १० ॥ कोसायारं जोणीं | संपत्ता सुक्कुमीसिया जइया । तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिणिंदेहिं ॥ १ ॥ बारस चेव मुहुत्ता उवरिं विद्धंस गच्छई सा उ । जीवाणं || श्री तन्दुलवैचारिक सूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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