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|च बोहिलाभोओएअंपत्थेअव्वं न पत्थणिजंतओ अन्नं ॥९॥उझिअनिआणसल्लो निसिभत्तनिअत्तिसमिइगुत्तीहि पंचमहव्व्यरक्खं
क्यसिवसुक्खं पसाहेइ ॥१४०॥ इंदिअविसयपसत्ता पडंति संसारसायरे जीवोपक्खिव्व छिन्नपक्खा सुसीलगुणपेहुणविहूणा ॥१॥ न लहइ जहा लिहंतो मुहिल्लिअंअद्विअंरसं सुणओसोसइ(य)तालुअरसिअंविलिहंतो मन्नए सुक्खं ॥२॥महिलापसंगसेवी न लहइ किंचिवि सुहं तहा पुरिसो । सो मन्नए वराओ सयकायपरिस्समं सुक्खं ॥३॥ सुद्धवि मग्गिजंतो कत्थवि केलीइ नत्थि जह सारो। इंदिअविसएसु तहा नत्थिं सुहं सुदृवि गविटुं॥४॥सोएणं पवसिअपिआ चक्खूराएण माहुरो वणिओघाणेण रायपुत्तो निहओ जीहाइ सोदासो॥५॥ फासिदिएण दुट्ठो नट्ठो सोमालिआमहीपालो। इविकणवि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता? ॥६॥ विसयाविक्खो निवडइ निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोह। देवीदेवसमागयभाउयजुअलं व भणिअंच (प्र० जिणवीरविणिहिट्ठो, दिद्रुतो बंधुजुयलेण) ७॥ छलिआ अवयक्खंता निरायवक्खा गया अविग्णी तम्हा पक्ष्यणसारं निराव्यक्षेण होअव्वं ॥८॥ विसए अव्यक्खंता पडंति संसारसायरे घोरे। विसएसु निराविक्खा तरंति संसारकंतारं ॥९॥ ता धीर! धीबलेणं दुईते दमसु इंदियमइंदे। तेणुक्खयपडिवक्खो हराहि आराहणपडाग॥ १५०॥ कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणे । निग्गिाह तेण सुपुरिस! कसायकलिणो पयत्तेण। १॥ अइतिक्खं दुक्खं जं जंच सुहं उत्तमं तिलोईए। तं जाण कसायाणं वुड्डिक्खयहेउयं सव्वं॥ २॥ कोहेण नंदमाई निहया माणेण फरसुरामाईमायाइ पंडरज्जा लोहेणं लोहनंदाई ॥३॥इय उवएसामयपाणएण पल्हाइअभिम चित्तंमिोजाओ सुनिव्वुओ सो पाऊण व ॥श्री भक्तपरिजा सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित |
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