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| ॥५॥आराहापुरस्सरमणन्नहियओ विसुद्धलेसाओ।संसाररक्खयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं॥६॥अरिहंतनमुक्कारो इक्कोऽवि हविज्ज जो मरणकालोसो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारूच्छेअणसमत्थो॥७॥ मिठो किलिटुकम्मो नमो जिणाणंतिसुक्यपणिहाणोकमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरूति सूलिहओ ॥ ८॥ भावनमुक्कारविवजिआई जीवेण अकयकणाई। गहियाणि अमुक्काणि अ अणंतसो नरवलिंगाई ॥९॥आराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोकारो। तह सुगइमन्गगमणे रहुव्व जीवस्स अपडिहो॥८०॥ अन्नाणीऽवि अ नवी आराहित्ता मओ नमुक्कार। चंपाए सिट्ठिसुओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ ॥१॥विजा जहा पिसायं सुट्टउवत्ता करेइ पुरिसवसं ॥ नाणं हिअयपिसायं सुटुवउत्तं तह करेइ॥ २॥ उवसभइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा उत्तेणी तह हियकिण्हसयो सुटुवउत्तेण नाणेणं॥३॥जह मक्कडओ खणभवि मज्झत्थो अच्छिउँन सक्केइ। तह खणभविमझत्थो विसएहिं विणा न होइ मणो॥ ४॥ तम्हा स उढिउमणो भणमक्कडओ जिणोवएसेणी काउं सुत्तनिबद्धो रामेअव्वो सुहझाणे ॥ ५॥ सूई जहा ससुत्ता न नस्सई क्यवरंभि पडिआवि। जीवोऽवि तह ससुत्तो न नस्सई गओवि संसारे ॥६॥खंडसिलोगेहि जवो जड़ ता मरणाउ रक्खिओ राया।पत्तो अ सुसामन्न किं पुण जिणउत्तसुत्तेणं? ॥७॥बना चिलाइएतस्पत्तो नाणं तहाऽभत्तं च । उसमविवेगसंवरपयसुभरणभित्त-सुअनाणो ॥८॥ परिहर छज्जीववहं सम्म मध्यावयणकायुजोगेहि। जीवविसेसं नाउं जावजीवं पयत्तेणं॥ ९॥ जह ते न पिअं दुक्खं जाणिअ एमेव सव्वजीवाणी सव्वायरमन विभमेण कुँणसुदय ।। १७॥ तुंगं न मंदराओ आगासाओ विसालयं नत्थिा जह तह जयंमि जाणसु PHAT श्री भक्तपरिण सी
| पू. सागरजी म. संशोधित ||
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