________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|भणिया ॥७॥ तत्तो तस्स महव्व्यपव्वयभारोनमंतसीसस्सो सीसस्स समारोवइ सुगुरूवि महव्वए विहिणा ॥८॥अह हुज्ज देसविरओ/I सम्मत्तरओ रओ अजिणधम्मे (प्र० क्यणे ) तस्सवि अणुव्वयाई आरोविजंति सुद्धाई ॥९॥अनियाणोदारमणो हरिसवसविसट्टकंचु (प्र० ८) यकरालो । पूएइ गुरुं संघं साहम्मियमाइ भत्तीए ॥३०॥ नियदव्वमपुव्वजिणिंदभवणजिणबिंबवरपटासु। विअरइ पसत्यपुत्थयसुतित्थ तित्थयरपूयासु ॥१॥ जइ सोऽवि सव्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइकाओ। छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो अ॥२॥संथारयपव्वज पव्वजइ सोऽविनिअम निरवज सव्वविरइप्पहाणं सामाइअचरित्त मारु हइ ॥३॥अह सो सामाइअधरो पडिवनमहव्वओ अ जो साहू । देसविरओ अ चरिमे पच्चक्खामिति निच्छइओ ॥४॥ गुरुगुणगुरूणो गुरुणो पयपंक्य नमिअमत्थओ भणहो भयवं! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुभ्यं पवजामि ॥५॥आराहणाइ खेमं तस्सेव य अपणो अगणिवसहो। दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा॥६॥ तत्तो भवचरिमे सो पच्चक्खाइत्ति तिविहमाहा। उक्कोसिआणि दव्वाणि तस्स सव्वाणि दंसिज्जा॥७॥पासित्तु ताई| कोई तीरं पत्तस्सिभेहिं किं मझा देसं च कोइ भुच्चा संवेगगओ विचिंतेइ ॥८॥ किं चत्तं ( चेत्थं) नोवभुत्तं मे, परिणामासुई सुई। दिद्वसारो सुहं झाइ, चोअणेसाऽवसीओ ॥९॥ अमलसोहणट्टा समाहिपाणं मणुनमेसोऽवि। महरं प्रज्जेअव्वो मंदं च विरेयणं खमओ ॥४०॥ एलतयनागकेसरतमालपत्तं ससक्करं दुद्धं । पाऊण कढिअसीअलसमाहिपाणं तओ पच्छ। ॥१॥ महरविरेअणमेसो कायव्वो फोफलाइदव्वेहि। निव्वाविओ अ अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ ॥ २॥ जावजीवं तिविहं आहारं वोसिरइ इहं खवगो) ॥श्री भक्तपरिज्ञा सूत्र॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only