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तिसुवि वंसेसु। सिप्पसयं कम्माणि य तिणि प्याए हिअकराणि॥ ३४॥ लोहस्स य उम्पत्ती होइ महाकालि आगराणं चोरुप्पस्स|| सुवण्णस्सय मणिमुत्तसिलप्यवालाणं ॥३५॥ जोहाण य उत्पत्ती आवरणाणंच पहरणाणं चोसव्वा य जुद्धणीई माणवगे दंडणीई| य ॥३६॥णविही गाडगविही कव्वस्स य चविहस्स उप्पत्ती। संखे महाणिहिंभी तुडिअंगाणं च सव्वेसि ॥ ३७॥ चक्कट्ठपट्टाणा
यणव य विक्खंभा बारस दीहा मंजूससंठिआजण्हवीइ मुहे ॥३८॥वेरुलिअमणिकवाडा कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा ससिसूरचक्कलक्खण अणुसमवयणोववत्तीया॥३९॥ पलिओवमट्टिईआ णिहिसरिणामा य तत्थ खलु देवा। जेसिं ते आवासा अभिजा आहिवच्चाय ॥४०॥ एए णव णिहिरयणा पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा जे वसमुवगच्छंती भरहाहिवचक्कवट्टीणं॥४१॥ तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणयंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खभइ, एवं मजणघरपवेसो जाव सेणिपसेणिसदावणया जाव णिहिरयणाणं अद्वाहिअंमहामहिमं करेंति, तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहिआए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सहावेइ त्ता एवं क्यासी गच्छ णं भो देवाणुप्पिया! गंगामहाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दुच्चपि सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणिय ओअवेहि त्ता एअमाणत्तिअंपच्चप्पिणाहि, तए णं से सुसेणेतंचेवपुव्वण्णिअंभाणियव्वंजाव ओअवित्ता पच्चप्पिणइ पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ, तए णं से दिव्वे चक्करयणे अन्नया क्याई आउहघरा पडिणिक्खमइ त्ता | अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडिअ जाव आपूरेते चेव विजयक्खंधावारणिवेसं मझंमज्झेणं णिग्गच्छइ त्ता || ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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