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॥श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
णमो अरिहंताणी 'जयइ नवणलिणकुवलयविगसियसयवत्तपत्तलदलच्छो। वीसे गइंदमयगलसललियगयविक्कमो भयवं॥१॥ णमिऊण असुरसुरगरुलभुयगपरिवंदिए गयकिलेसे। अरिहे सिद्धायरियउवझाए सव्वसाहू य॥२॥ फुडवियडपायडत्थं वुच्छं| पुव्वसुयसारणीसंदीसुहुमं गणिणोवइ8 जोइसगणरायपत्रत्तिं ॥३॥णामेण इंदभूइत्ति गोयमो वंदिऊण तिविहेणीपुच्छइ जिणवरवसहं | जोइसरायस्स पण्णत्तिं ॥४॥ कई मंडलाइं वच्चइ तिरिच्छ। किं च गच्छइ। ओभासइ केवइयं, सेयाइ किं ते संठिई ॥५॥ कहिं पडिहया लेसा, कहं ते ओयसंठिई। किं सूरियं वरयते, कहं ते उदयसंठिई ॥६॥ कईकट्ठा पोरिसीच्छाया, जोएत्ति किं ते आहिए| १०॥ के ते संवच्छराणादी, कइ संवच्छराइ २ ॥७॥ कह चंदमसो वुड्ढी, क्या ते दोसिणा बहू के सिग्धगई वुत्ते, किं ते दोसिणलक्खणं ॥८॥चयणोववाय उच्चत्ते, सूरिया कइ आहिया अणुभावे केरिसे वुत्ते २०, एवमेयाई वीसई ॥९॥१॥वड्ढोवड्ढी मुहत्ताणमद्धमंडलसंठिई। के ते चित्रं परियरइ अंतरं किं चरंति य ॥१०॥ ओगाहइ केवइयं, केवतियं च विकंपइ। मंडलाण य संठाणे, विक्खंभो अट्ठ पाहुडा ॥११॥२॥ छप्पंच य सत्तेव य अट्ठ तिनि य हवंति पडिवत्ती। पढमस्स पाहुडस्स उ एयाउ हवंति || श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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