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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयगरए दुंदुभए संखे संखणाभे २० संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे रुप्पी रुथ्योभासे नीलो नीलोभासे भासे भासरासी ३० दगे दगवण्णे तिले तिलपुष्पवण्णे काए काग(व)धे इंदग्गी धूमकेतू हरि पिंगलए ४० बुद्धे सुक्के बहस्सती राहू अगत्थी माणवते कामफासे धुरे पमुहे वियडे ५० विसंधी कप्पेल्लए पड़ल्ले जडिलए अणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोस्थिए सोवत्थिए। वद्धमणए ६० प्लंबे णिच्चालोए णिच्चुज्जोए सयंपहे ओभासे सेयंरे आभंकरे पभंकरे अरए ७० विरए असोगे वीयसोगे विवत्ते विवत्थे विसाले साले सुव्वते अणियट्टी एकजडी ८० दुजडी करे करिए राय अगले भावे केऊ पुष्फकेतू (सूर्य० गाथा ८९९७) ॥ १०६ ॥ २० पाहुडं॥ | इय एस पागडत्था अभव्वजणहिय्यदुलभा इणमो। उक्कित्तिया भगवती जोइसरायस्स पन्नत्ती ॥ ९८॥ एस गहियावि संती थद्धे गारवियमाणपडिणीए। अबहुस्सुए न देया तश्विरीए भवे देया ॥ ९९॥ धिइउट्ठाणुच्छाहकमबलविरियपुरिसकारेहि। जो सिक्खिओवि संतो अभायणे पक्खिविजाहि ॥ १००॥ सो पक्यणकुलगणसंधबाहिरो णाणविणयपरिहीणो। अरहंतथेरगणहरमेरं किर होइ वोलीणो ॥१॥ तम्हा धिइट्ठाणुच्छाहकम्मबलविरियसिक्खियं णाणी धारेयव्वं णियमा ण य अविणीएसु दायव्वं ॥ २॥ वीरवरस्स भगवतो जरभरणकिलेसदोसरहियस्सो वंदामि विणयपणतो सोक्खुप्याए सया पाए ॥ १०३॥ गाथा : १०३ सू. |१०७ चं.।१०७० इति श्रीचंद्रपज्ञप्त्युपांगम् सूत्रं संपूर्ण ॥ प्रभु महावीरस्वामीनी पट्टपरंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चान्द्रकुल ॥ श्री चन्द्रप्रजप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021019
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size10 MB
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