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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अट्ठेव य अंगुलाई साहित्या । एसा खलु सिद्धाणं जह० ॥५॥ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण होति परिहीणा । संठाणमणित्थंथं जरामरणविष्यमुक्काणं ॥६॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नोऽत्रसभोगाढा पुट्ठा सव्वेवि लोगते ॥७॥ फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहिं नियमसो सिद्धो । तेऽवि य असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥८॥ असरीरा जीवधणा उवउत्ता दसणे य नाणे यो सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥९॥ केवलनाणुवउत्ता जाणंता सव्वभावगुणभावे । पासंता सवओ खलु केवलदिट्ठीहिऽणंताहिं ॥१७०॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नविय सव्वदेवाणं । सिद्धाणं सुक्खं अव्वाबाहं उवग्याणं ॥१॥ सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडियं अणंतगुणं । नवि पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं वग्गवग्गूहिं ॥२॥ सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेजा। सोऽणंतवगभइओ सव्वागासे न माइजा ॥३॥जह णाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे वियाणतो न चएइ परिकहेउँ उवभाए तहिं असंतीए ॥४॥इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं नस्थि तस्स ओवमं किंचिविसेसेणित्तो सारिक्खभिणं सुणह वोच्छं ॥५॥जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । ताहाछुहाविमुक्को अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो॥६॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धासासयमव्वाबाहं चिटुंति सुही सुहं पत्ता ॥७॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्तिय पारगयत्ति य परंपरागयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अजर अमरा असंगा य ॥८॥ निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का । अव्वाबाहं सोक्खं अणुहोति सासयं सिद्धा ॥१७९॥५४॥ इइठाणपयं २॥ दिसि गइ इंदिय काए जोए वेए कसाय लेसा यो सम्मत्त नाण ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
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