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पक्वीसु॥२१५॥ जोयणसहस्स गाउयपुहुत्त तत्तो य जोअणपुहुत्ती दोण्हं तु घणुपुहुत्तं समुच्छिमे होति उच्चत्तं ॥२१६॥|| मणूसोरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया० पं०?, गो०! जह० अंगु० असं० उक्को तिण्णि गाउयाई, एवं अपज्जत्ताणं जह० उक्को० अंगुलस्स असं० संमुच्छिमाणं जह० उक्को० अंगुलस्स असं०, गब्भवतियाणं प्रज्जत्ताण य जह० अंगुलस्स असं० उको० तिण्णि गाउयाई१२७०। वेब्वियसरीरे णं भंते! कतिविधे पं०?, गो०! दुविधे पं० २०- एगिदियवेउव्वियसरीरे य पंचिदियवे३०, जति एगिदियवे३० किं वाउकाइएगिदियवे० अवाउक्काइय०?, गो०! वाउकाइयएगिदिय० नो अवाउक्काइय०, जइ वाउकाइयवेउव्वियसरीरे किं सुहुभवाउक्काइय० बायवाउ०?, गो०! नो सुहुमवाउ० बादरवा3०, जइ बादरवाउकाइयए० किं पज्जत्तबादरवा३० अपज्जत्त०? गो०! प्रज्जत्तबादरवाउ० नो अपज्जत्तबादरवाउ०, जति पंचेंदियवेउब्वियसरीरे किं नेरइयपंचिंदियवे० जाव किं देवपंचिंदियवे०?, गो०! नेरइयपंचिंदिय० जाव देवपंचिदियवेचिय०, जई नेरइय० किं स्यणप्पभापुढवी० जाव किं अधेसत्तमापुढवी०?, गो० रयणप्पभापुढवीनेरइय० जाव अधेसत्तमा० वेउब्वियसरीरेऽवि, जइ रयणप्पभापुढवीनेरइयविउव्वियसरीरे किं पजत्तगरय० अपज्जत्तगरयणप्यमा०?, गो०! पज्जतगरयणप्यभापु० अपज्जतगरयणप्यभापु०, एवं जाव अधेसत्तमाए दुगतो
भेदो भाणितव्यो, जइ तिरिक्खजोणिय० किं संमुच्छिमपं० तिरि० ३३० गब्भवक्रतियति० ०?, गो०! नो समुच्छिमपं० ति० | गब्भवक्कतियपंचिं० ति०, जति गब्भवतियपंचिदियति० किं संखेज्जवासाउयगब्भववंतिय० असंखिजवासाउयग०?, गो०! ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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