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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतो० उदो० सागरोवमसत्पुहत्तं सातिरेग, एगिदियपजत्तए णं भंते! पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उदो० संखेजाई वाससहस्साई |बेइंदिय पज्जत्तए णं पुच्छा, गो० जह० अंतो० उदो० संखेजवासाई, तेइंदियपज्जत्तए णं पुच्छ। गो०! जह० अंतो० उक्को० ||संखेज्जाइं राइंदियाई, चारिदियपज्जत्तए णं भंते० पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० संखेज्जा मासा, पंचिंदियपज्जत्तए णं भंते! | पंचिंदियपज्जत्तएत्ति कालतो केवचिर होइ?, गो०! जह० अंतो० उक्को० सागरोवमसयपुहुत्ती दारं ३) २३४। सकाइए णं भंते! सकाइएत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो०! सकाइए दुविहे पं००-अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए, पुढ्वीकाइए णं पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उदो० असंखेनं कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालतो खेत्ततो असंखेज्जा लोगा, एवं आउतेउवाउकाइयावि, वणस्सइकाइयाणं पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणीअवसप्पिणिओ कालओ खेत्तओ अणंता लोगा असंखेजा पुग्गलपरियट्टा तेणं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेजइभागो, तसकाइए णं भंते! पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमब्भहियाई, अकाइए णं भंते! पुच्छा, गो०! अकाइए सादिए अपज्जवसिए, सकाइयअपज्जत्तए णं पुच्छा, गो०! जह० उक्को० अंतो०, एवं जाव तसकाइयअपज्जत्तए, सकाइयपज्जत्तए पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं, पुढवीकाइयपज्जत्तए पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० संखेज्जाइं वाससहस्साइं, एवं आऊवि, तेउकाइयपज्जत्तए पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० संखेज्जाइं राइंदियाई, वाउकाइयपजत्तए णं ||॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ | २४२ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
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