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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir |पज्जवा पं०?, गो०! अणंता प्रज्जवा पं०, से केण० जहन्नाभिणिबोहियनाणीणं बेइंदियाणं अणंता प्रज्जवा पं०?, गो०!|| जहन्नाभिणिबोहियणाणी बेइंदिए जहन्नाभिणिबोहियणाणिस्स बेइंदियस्स दव्वटुपएसठ्ठयाए तुल्ले ओगाहणठ्याए चउट्ठाणवडिए ||ठिईए तिट्ठाणवडिए वनगंध० छट्ठाणवडिए आभिणिबोहियतुल्ले सुय० अचक्खु० छट्ठाणवडिए, एवं उक्कोसाभिणिबोहियाणीवि, अजहन्नमणुकोसाभिणिबोहियणाणीवि एवं चेव नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए, एवं सुयनाणीवि सुयअन्नाणीवि अचक्खु दंसणीवि, णवरं जत्थ्णाणा तत्थ अनाणा नत्थि जत्थ अन्नाणा तत्थ् णाणा नस्थि, जत्थ दंसणं तत्थ णाणावि अन्नाणावि, एवं तेइंदियाणवि, चरिदियाणवि एवं चेव णवरं चक्खुदंसणं अब्भहियो११४। जहन्नोगाहणगाणं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया प्रज्जवा पं०?, गो०! अणंता पज्जवा पं०, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहन्नोगाहणगाणं० अणंता प्रज्जवा पं०?, गो०! जहन्नोगाहणए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नोगाहणयस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए ओगाहण० तुल्ले ठिईए तिहाणवडिए वन्नगंध९ दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं दोहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए, उक्कोसोगाहणएवि एवं चेव णवरं तीहिं नाणेहिं तीहिं दसणेहिं छट्ठाणवडिए, जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहन्नमणुक्कोसोगाहणएवि णवरं ओगाहणठ्याए ठिईए चउट्ठाणवडिए, जहन्नठिझ्याणं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया प्रज्जवा पं०? गो०! अणंता पजवा पं०, से केण० जहन्नठिइयाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अर्णता प्रज्जवा पं०? गो०! जहन्नठिइए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नठिइयस्स ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
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