________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
શ્રી પ્રજ્ઞાપનોપમ છે
ववगयजरमरणभये सिद्धे अभिवन्दिऊण तिविहेणी वन्दामि जिणवरिन्दं तेलोकगुरुं महावीरं ॥१॥ सुथरयणनिहाणं जिणवरेण भवियजणणिव्वुइरेणी उवदंसिया भगव्या पनवणा सव्वभावाणं ॥२॥ वायगवरवंसाओ तेवीसइभेण धीरपुरिसेण। दुद्धरधरेण मुणिणा पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीणा ॥३॥सुयसागरा विणेऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिन्नीसीसगणस्स भगवओ तस्स नमो अज्जसामस्स ॥४॥ अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिद्विवायणीसन्दी जह वत्रियं भगव्या अहमवि तह वनइस्सामि ॥५॥ पनवणा ठाणाई बहुक्त्तव्वं ठिई विसेसा या वक्कन्ती ऊसासो सन्ना जोणी य चरिमाई १० ॥६॥ भासा सरीर परिणाम कसाए इन्दिय प्पओगो योलेसा कायलिई या सम्भत्ते अन्तकिरिया २० २ ॥७॥ओगाहणसंठाणा किरिया कम्मे इयावरे। बन्धए वेदवेदस्स, बन्धए वेयवेयए | ॥८॥ आहारे उवओगे पासणया ३० सन्नि सञ्जमे चेवा ओही पवियारण वेदणा य तत्तो समुग्धाए ३६ ॥९॥ से किं तं पनवणा?, पनवणा दुविहा पण्णत्ता तंजहा जीवपन्नवणा य अजीवपन्नवणा य १ से किं तं अजीवपन्नवणा?, अजीवपनवणा दुविहा पं० ० - रूविअजीवपन्नवणाय अरूविअजीवपन्नवणाय,से किं तं अरूविअजीवपन्नवणा?, २ दसविहा पं० ० - धम्मस्थिकाए ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
| १.
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only