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________________ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra |णं गारवड जाव केई दोहिं पडिग्गहेहिं उवनिमंतेज्जा एवं आउसो ! अध्यणा पडिभुंजाहिं एगं थेराणं दलायाहि, से य तं पडिग्गहेजा तहेव जाव तं नो अप्पणा पडिभुंजेज्जा नो अनेसिं दावए सेसं तं चेव जाव परिद्वावेयव्वे सिया, एवं जाव दसहिं पडिग्गहेहिं, एवं जहा पडिग्गहवत्तव्वया भणिया एवं गोच्छगर यह रणचोलपट्टगकं-बललट्ठीसंथारगवत्तव्वया भाणियव्वा जाव दसहिं संथारएहिं उवनिमंतेज्जा जाव परिद्वावेयव्वे सिया ॥ ३३२ ॥ निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविद्वेणं अन्नयरे अकिच्चद्वाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि विउट्टामि विसोहेमि अकरणयाए अम्मुट्टेभि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि, से य संपट्टिए असंपत्ते थेरा य पुव्वामेव अमुहा सिया से णं भंते! किं आराहए विराहए ?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संघट्ठिए असंपत्ते अष्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया से णं भंते! किं आराहए विराहए?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्टिए असंपत्ते थे। य पुव्वामेव | कालं करेजा से णं भंते! किं आराहए विराहए?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्टिए असंपते अध्मणा य पुव्वामेव कालं करेज्जा से णं भंते! किं आराहए विराहए ?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्टिए संपत्ते घेरा य अमुहा सिया से णं भंते! किं | आराहए विराहए?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्टिए संपत्ते अप्पणा य० एवं संपत्तेणवि चनारि आलावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं, निग्गंथेण य बहिया वियारभूमिं विहारभूमिं वा निक्खतेणं अन्नयरे अकिच्चद्वाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवति ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ १२५२ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021005
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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