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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org णं भंते! पुष्वामेव थूलमुसावाए अपच्चक्खाए भवइ से णं भंते! पच्छा बच्चाइक्खमाणे० एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भणियं तहा मुसावायस्सवि भाणियव्वं, एवं अदिन्नादाणस्सवि, एवं थूलगस्स मेहणस्सवि, थूलगस्स परिग्गहस्सवि, जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायसा, एए खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवंति ॥ ३२८ ॥ आजीवियसमयस्स णं अयमट्टे पं० अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुंपित्ता उदवडता आहारमाहारेंति, तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, नं० - नाले (प्र० नमाले ) तालपलंबे उव्विहे संविहे अवविहे उदए नामुदए णमुदए अणुवालए संखवालए अयंबु(पु)ले कायरए इच्चेते दुवालसमाजीवियोवासगा अरिहंतदेवतागा अभ्मापि सुस्सूसगा पंचफलपडिकंता, तं० उंबरे हिं वडेहिं बोरेहिं सतरेहिं पिलंखूहिं, पलंडुल्हसणकंदमूलविवज्जगा अणिल्लंछिएहिं अणकभिन्नेहिंगोणेहिं तसपाणविवज्जिए हिं चि (प्र० छे ) तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएऽवि ताव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति जेसिं नो कष्यंति इमाई पन्नरस कम्मादाणाई सयं करेत्तए वा कारवेत्तए वा करेंतं वा अन्नं न समणुजाणेत्तए, तं० - इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिजे लक्खवाणिज्जे के सवाणिज्जे रसवाणिज्जे विसवाणिज्जे जंतपीलणकम्मे निल्लछणकम्मे दवग्गिदावणया सरदहतलायपरिसोसणया असतीपोसणया, इच्छेते समणोवासगा सुक्का सुक्काभि जातीया भविया भवित्ता कालमासे कालं किच्चा | अन्नयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववतारो भवंति ॥ ३२९ ॥ कतिविहा णं भंते! देवलोगा पं०?, गोयमा ! चउव्विहा देवलोगा पं० तं०पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ २५० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.021005
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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