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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीडयषुत्ने अपगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइत्ता संजमेणं तवसा अध्याण भावेमाणे विहर३ । १५३। भंतेति भगवं गोयमे समण भगवं महावीर वंदइ नमसइ त्ता एवं वयासी कम्हा णं भंते लवणसमुद्दे चाउद्दसमुठ्ठिपुत्रभासिणीसु अंतिरेयं वड्ढति वा हायति वा?, जहा जीवाभिगमे लवणसमुहवत्तव्या नेयव्वा जावलोयद्विती, जण लवणसमद्दे जंबुद्दीवं २णा उप्यालेति णो चेवणएगोदगी करेइ ( पा०लोयद्विई)लोयाणभावे । सेवं भंते! २त्ति जाव विहरति ।१५४। किरिया समत्ता ॥२०३ 3०३॥ ____ अणारे णं भंते! भावियप्या देवं विउब्वियसमुन्धारण समोहयं जाणरूवेणं जायमाणंजाणइ पासइ?, गोयमा! अत्थेगइए देवं पासइ नो जाणं पासइ अत्थेगइए जाणं पासइ नो देवं पासइ अत्थेगइए देवपि पासइ जाणंपिपासइ अत्थेगइए नो देवं पासइ नो जाणं पासइ, अणगारे णं भंते! भावियप्या देविं वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ?, गोयमा! एवं चेव, अणगारे ण भंते! भावियप्पा देवं सदेवीयं वेब्वियसमुग्धाएसमोहयं जाणावेणं जायमाणं जाणइ पासइ?, गोयमा! अत्थेगइए देवं सदेवीयं पासइनो जाणं पासइ एएणं अभिलावेणं चतारि भंगा, अणगारे णं भंते! भावियप्यारुखस्स किं अंतो पासइ बाहिं पासइ?, चउभंगो, एवं किं मूलं पासइ कंदं पा०?, मूलं पा० खंधं पा०?, चउभंगो, एवं मूलेणं बीजं संजोएयव्वं, एवं कंदेणविसमं संजोएयब्द जाव बीयं, एवं जाव पुफेणसमंबीयं संजोएयवं, अणगारेणं भते! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पा. बीयंपा०?, चउभंगो! । १५५।। पभूण भंते! वाउकाए एगं महं इन्थिरूवं वा पुरिसरुवं वा हस्थिरूवं वा जाणरूवं वा एवं जुगगगिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियारूवं वा ॥ ॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021005
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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