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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | णाणदिट्टंतवयणणिस्सारं सुट्ठ दरिसयंता विविहवित्थराणुगमपरमसम्भावगुणविसिट्टा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकार दुग्गेसु | दीवभूआ सेवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभनिष्पकंपा सुत्तत्था, सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, से णं अङ्गट्टयाए दोच्चे अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तेत्तीस उद्देसणकाला तेत्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पदसहस्साइं पयग्गेणं पं०, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परुविज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति, से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जंति पण्णविज्जंति परुविज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति, से तं सूअगडे ।१३७ । से किं तं ठाणे ?, ठाणेणं ससमया ठाविज्जन्ति परसमया ठाविज्जंति ससमयपर समया ठाविज्जंति जीवा ठाविज्जंति अजीवा ठाविज्जंति जीवाजीवा० लोगो० अलोगो लोगालोगा ठगविज्जंति, ठाणेणं दव्वगुणखेत्तकालपज्जवपयत्थाणं सेला सलिला य समुद्दा सूरभवणविमाण आगर नदीओ । णिहिओ पुरिसज्जाया (पुरिसजोया पा० )सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥ ६२ ॥ एक्कविहवत्तव्ययं दुविह जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइ णं च णं परूवणया आघविज्जंति०, ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदरा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेजा सिलोगा संखेज्जाओ संग्रहणीओ, से णं अंगट्टयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्वीसं उद्देसणकाला० बावत्तरिं पयसहस्साइं पयग्गेणं पं०, ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ ६९ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021004
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages113
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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