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| पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाइ, एयं खु अणुधम्मियं तस्स ॥४३॥ चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाणजाइया आगम्म । अभिरुझ कायं विहरिसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु ॥ संवच्छरं साहियं मासं, जं न रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए तओ चाई तं वोसिज्ज वत्थमणगारे ॥४५ ॥ अदु पोरिसिं तिरियं भित्तिं चक्खुमासज्ज अन्तसो झायइ । अह चक्खुभीया संहिया ते हन्ता हन्ता बहवे कंदिंसु ॥४६॥ सयणेहिं वितिमिस्सेहिं इत्थओ तत्थ से परित्राय । सागारियं न सेवेइ य, से सयं पवेसिया झाइ ॥४७॥ जे केइमे अगारत्या मीसीभावं पहाय से झाइ । पुट्ठोवि नाभिभासिंसु गच्छइ नाइवत्तइ अंजु (पुट्ठो व सो अपुट्ठो व णो अणुन्नाइ पावगं भगवं पा० ) ॥ ४८ ॥ णो सुकरमेयमेंगेसिं नाभिभासे य अभिवायमाणे । हयपुव्वे तत्थ लूसियपुव्वे अष्पपुण्णेहिं ॥ ४९ ॥ फरुसाई दुतितिक्खाई। अइअच्च मुणी परक्कममाणे । आधायनट्टगीयाई दण्डजुद्धाई मुट्ठिदुद्धाई ॥ ५० ॥ गढिए मिहुकहासु समयंभि नायसुए विसोगे अदक्खु|| एयाई से उरालाई गच्छइ नायपुत्ते असरणयाए ॥ ५१ ॥ अवि साहिए दुवे वासे सीओदं अभुच्चा निक्खन्ते । एगत्तगए पिहियच्चे से अहिनायदंसणे सन्ते ॥ ५२ ॥ पुढविं च आउकार्यं च तेउकायं च वाउकायं च । पणगाई बीयहरियाई तसकायं च सव्वसो नच्चा ॥ ५३ ॥ एयाइं सन्ति पडिलेहे, चित्तमन्ताई से अभिन्नाय । परिवज्जिय विहरित्था, इय सङ्घाय से महावीरे ॥ ५४ ॥ अदु थावरा य तसत्ताए, तसा य थावरत्ताए । अदुवा सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कम्पिया पुढो बाला ॥५५ ॥ भगवं च एवमन्नेसिं (प्र० से ) सोवहिए हु लुप्पई बाले । कम्मं च सव्वसो नच्चा तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥ ५६ ॥ दुविहं समिच्च मेहावी किरियमक्खायऽणेलिसं नाणी । पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥
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