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पकरिता उवसामगवत्थागयो चिय पुण वि परिवडिय । अहवा तत्थेव ठिओ उक्कोसजोगा उ परिवडिय थोवं पएसबंधं तस्स करितस्स साइओ बंधो । तं ठाणमपत्तस्स उ अणाइबंधो मुणेयव्वो सेसतिगे उक्कोसे जहण्णअजहण्णयम्मि बंधतिगे । दुविगप्पो साईअ - धुवलक्खणो होइ किर बंधो तत्थ अणुभिणण-पसंगओ सुहुमसम्परायम्मि । भणिओ परसबंधो उक्कोसो सो य किर पढमं बंधंतस्स उ साई तहोवसंताउ परिवडंतस्स । तत्थेवोकिट्ठगजोगओ य अणुकिट्टजोगम्मि गच्छंतस्स उकिट्टो न होइ तो तत्थ अधुवओ वंधो । होइ जण्णओ पुण छण्हं कम्माण एएसि होई पएसबंधो सुहुमनिगोयस्स अप्पजत्तस्स । सव्व अइमंदवीरियलद्धीजुत्तस्स सत्तस्स सत्तविहं बंधगस्स उ अजहण्णजोगित्तणे पढमगम्मि । भवसमयम्मि जहण्णो पएसबंधी फुडं होई तस्सेव निगोयस्स उ भवदुतितुरियाइएसु समएसु । अजहण्णो सो होई असंखगुणविरियजुत्तस्स तो पुण संखेज्जेणं असंखकालेण वा वि पुव्वत्तं । पाविज्जजहण्णजोगं स एव बंधं जहण्णं तु पकरइ पएसबंधं पुण अजहण्णं इमाए रीईए । संसारम्मि अनंते परिब्भमंताण जीवाणं अजहण्णजहण्णे परसबंधे य दोवि किर हंति । साईय अधुवबंधो अह पभणइ मोहआऊणं
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