SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ७६२ ॥ ।। ७६३ ॥ ॥ ७६४ ॥ ॥७६५ ॥ ॥७६६॥ ॥ ७६७॥ तित्थं सम्मं मीसं पणयालीसं च घाइपयडीओ। इय अडहत्तरि पयडी जीवविवागा मुणेयव्वा भणिओ णुभागबंधो संपइ वसरो पएसबंधस्स । तस्साणुओगदारा चत्तारि हवंति ते इमे कम्मस्स पएसाणं आयाणविहीओ भागकित्तणया। साईयाइपरूवण-सामित्तपरूवणे चेव एगपएसोगाढं ईगाहदुगेण पढमदारं ति । वण्णेइ तत्थ कम्मं जह गिण्हइ तह किर भणइ इह एगस्स जियस्स उ लोगागासप्पएसपरिमाणा। हुंति पएसा ते पुण मिच्छाईबंधहेऊण उदए सव्वेहिं पिय निययपएसेहिं बंधए जीवो। नउ एगदुगाईहिं एगपएसावगाढं ति जत्थेव उ जीवस्स उ निययपएसा तहिं च किर खेत्ते । जं अवगाढं दव्वं तं गिण्हइ न पुण बाहिरयं एगपएसे वावरमाणे सव्वेसि होइ वावारो । अइनिवडिहेमसंकलगडियाण्णोवण्णजुत्ताणं तह कम्मवग्गणाणं मज्झगयं बिति कम्णुणो जोगं । इह गहणजोग अग्गहणवग्गणाणं च भावत्थो सयगस्स उ वित्तीओ कम्मप्पयडीओ वा विउसेहिं । विण्णेयं अह साइय-मणाइयं वावि इयवयणे अविसद्दाओ अधुवं भव्वो उ धुवं च बंधइ अभव्वो। चउफासमेत्थ मिउलहुफासदुगमवट्ठियं चेव अण्णं च निद्धउण्हा निद्धासीया व रुक्खसीया य। रुक्खा उपहा अविरुद्धफासजुयसहियचउफासा ।। ७६८ ॥ ॥ ७६९॥ || ७७० ॥ ।। ७७१ ।। ॥ ७७२ ॥ ॥ ७७३ ॥ ८८ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy