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पूर्वधरवाचकवर श्रीशिवशर्मसूरिविरचितः ॥ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः ॥
अरहंते भगवंते अणुत्तरपरकम्मे पणमिऊणं । बंधय निबद्धं संगहमिणमो पवक्खामि सुणह इह जीवगुणसण्णिएसु ठाणेसु सारजुत्ताओ । वोच्छं कइवइयाओ गाहाओ दिट्टिवायाओ उवयोगाजोगविही जेसु य ठाणेसु जत्तिआ अत्थि । जप्पच्चइओ बंधो होइ जहा जेसु ठाणेसु बंधं उदयमुदीरणविहिं च तिण्हं पि तेसि संजोगं । बंधविहाणे य तहा किंचि समासं पवक्खामि एदिएसु चत्तारि हुंति विगलिदिएसु छच्चेव । पंचिदिए वि तहा चत्तारि हवंति ठाणाणि
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तिरियगईए चोद्दस, हवन्ति सेसासु जाण दो दो उ । मग्गठाणे सेवं, नेयाणि समासठाणाणि
गइइन्दिए य काए, जोए वेए कसायनाणे य । संजमदंसणलेसा, भवसम्मे सण्णिआहारे एकारसेसु तिय तिय दोसु चउक्कं च बारसेगम्मि । जीवसमासेए सेवं उवओगविही मुणेयव्वा
वसु चउक्के एक्के जोगा एक्को य दोण्णि पण्णरस । तब्भवगएसु एए भवन्तरगएसु काओगो उवओगा जोगविही जीवसमासेसु वण्णिया एवं | तो गुणेहि सह परिगयाणि ठाणाणि मे सुणह मिच्छद्दिट्टी सासणमिस्से अजए य देसविरए य । नव संजएस एवं चउदस गुणनाम ठाणाणि
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