SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इयइगुणतीसपयडीण सुद्धपज्जत्तबायरेगिंदी | निव्वत्तर द्वीबंधं जहण्णयं तोऽन्तरमुहुत्ता अविसुद्ध होऊणं अजहण्णबंधं करेइ तो तम्मि । जम्मे भवंतरे वा होउं सुद्धो पुण जहणणं बंध इई जहण्णाजहण्णापरियत्तमाणया होई । एवं एए दो विहु साई अधुवा विहु भवंति उक्कोसगबंधं पुण एयासि असुद्धसणिपंचिदी | पकरन्तो ऽन्तमुहुत्ता पुण अणुक्कोसं कुणई बंध तो पुणरवि उक्कस्सं कुणइ कयाई उक्किइयराय । एवं परिवत्तीए भवंति साई अधुवया य सायासायाईणं सेसाणं अधुवबंधिपयडीणं । तेवत्तरिए बन्धो जहण्णाईओ चउविहो वि अधुवत्ता देवभवे साईअधुवो य तत्थ भावणिया । सुगमा असुभसुभा वोच्छं सव्वासिं ति गाहाए सुभअसुभाणं पि हुंति असुभाओ इय पयस्स एसत्थो । असुभा कसायउदया ही वुढीहाणिओ हुति जेणं असुभसुभाणं पयडीण ठिईकसायवुडीए । वर्द्धते तासिं अवचए उ ताओ विहीयंति (इ) ईसव्वपयारेहिं अधुव्वअसुभ कसायबंधणओ । सव्वाओ वि ठिईओ असुभाओ च्चिय ईह भवंति सव्वगाहाए पच्चयपरूवणा पच्चओ य संकेसो । जेरेहि दुविहो सेसं सुगमं अह भइ ठीबंधस्सामित्तं तहि सव्वुपभिइचऊहि गाहाहिं । उक्कसट्टिइसामित्तं भणेइ सुगमं च तं किं तुं ૫ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ॥ ४०२ ॥ ॥ ४०३ ॥ ॥ ४०४ ॥ ॥ ४०५ ॥ ॥ ४०६ ॥ ॥ ४०७ ॥ ॥ ४०८ ॥ ।। ४०९ ॥ ॥ ४१० ॥ ॥ ४११ ॥ ॥ ४१२ ॥ ॥ ४१३ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy