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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ३१८ ॥ ॥ ३१९ ॥ ॥ ३२० ॥ ॥ ३२१ ।। ॥ ३२२ ॥ इह भावणिया उवरिमबंधदुगं हवइ वेयणियवज्जे । कम्मचउगम्मि तत्थ वि नाणावरणविग्घगोत्ताणं उवसंताउ निवडओ आउस्स अबंधगो नियट्टीओ। परिवडओ समयम्मी पढमम्मि हो अवत्तव्वो बीयाइसु वट्ठियओ वेयणियासुं अवट्ठिआ चेव । समयम्मि बज्झमाण-तणेण अण्णे उ न घडंति इह तिण्णि दसट्ठठाण-पभिईण तहेव भावाणं । भावत्थो सव्वो वि हु सत्तरिया चुण्णिओ नेओ एत्तो पुण सव्वासिं इय गाहदुगेण बंधसामित्तं । वुच्छेओ सोलइमाइ गाहपणगेण पयडीणं तब्भणणानिद्दिढ़ सामित्तं एत्थ सव्वपयडीणं । तब्भणणाओ य तहा पयडीदारं पि गयमेयं अह ठीबंधे पंच उ अणुओगद्दारया उ ते य इमे। ठिइएपरूवणा साइयाइपयडीणवण्णणया सुभअसुभभणणपच्चय-परूवणाय ठिइबंधसामित्तं । इय तेरसगाहाहिं भणिस्सई तत्थ ठीबंधो सत्तरि कोडापभिई गाहाजुयलेण ठीपरूवणया। मूलट्ठिइ त्ति गाहाए ठिइए साइयाइवण्णणया मूलपयडीण तह उत्तराण अट्ठारमाइगाहाणं । जुयलेणं सायाईपरूवणा तह य सव्वासि गाहाए उ सुभअसुभवण्णणया सव्व ठि त्ति गाहाए । पच्चयपरूवणा तह सव्वुक्कोसाइगाहाहिं चाहिं उक्कोसठिई तह आहार त्ति गाहजुयलेणं । जहण्णठिईए बंध-स्सामित्तं पभणियं नेयं ॥ ३२४ ॥ ॥ ३२५ ॥ ॥ ३२६ ॥ ॥ ३२७ ॥ ॥ ३२८ ॥ ॥ ३२९॥ ५१ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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