SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंडदुगे छ छ गिरिणो सग सग वासा यअरविवररूवा । धुरि अंति समा गिरिणो वासा पुण पिहुलपिहुलयरा ॥ २२६ ॥ दहकुंडुडुत्तममेरुमुस्सयं वित्थरं विअड्ढाणं । वट्टगिरीणं च सुमेरुवज्जमिह जाण पुव्वसमं ॥ २२७ ॥ मेरुदुगं पि तह च्चिअ णवरं सोमणसहिढुवरिदेसे। सगअडसहसऊणु त्ति सहसपणसीइ उच्चत्ते ॥२२८ ॥ तह पणणवई चउणउअ अद्धचउणउअ अट्ठतीसा य । दस य सयाइ कमेणं पणट्ठाण पिहुत्ति हिट्ठाओ ॥२२९ ॥ णइकुंडदीववणमुहदहदीहरसेलकमलवित्थारं । णइउंडत्तं च तहा दहदीहत्तं च इह दुगुणं ।। २३० ॥ इगलरक्खु सत्तसहसा अडसय गुणसीइ भद्दसालवणं । पुव्वावरदीहं तं जामुत्तर अट्ठसीभइअं ।। २३१ ॥ बहिगयदंता दीहा पणलक्खूणसयरिसहस दुगुणट्ठा । इअरे तिलक्ख छप्पण्णसहस्स सय दुण्णि सगवीसा ॥२३२ ।। खित्ताणुमाणओ सेससेलणइविजयवणमुहायामो। चउलक्खदीहवासावासविजयवित्थरो उ इमो ॥ २३३ ॥ खित्तंकगुणधुवंके दो सय बारुत्तरेहिं पविभत्ते । सव्वत्थ वासवासो हवेइ इह पुण इय धुवंका ॥ २३४ ॥ धुरि चउदलक्ख दुसहस दोसगणउआ धुवं तहा मज्झे । दुसय अडुत्तरसतसट्ठिसहस छव्वीसलक्खा य ॥२३५ ॥ गुणवीससयं बत्तीससहस गुणयाललक्ख धुवमंते । णइगिरिवणमाणविसुद्ध खित्तसोलंस पिहु विजया ॥ २३६ ॥ णवसहसा छसय तिउत्तरा य छच्चेव सोलभाया य । विजय पिहुतं णइगिरिवण विजयसमासि चउलक्खा ॥ २३७ ॥ गशवंका ૩૪૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy