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इसुवग्गिछगुणिजीवा वग्गजुए मूल होइ धणुपिटुं। धणुदुगविसेससेसं दलिअं बाहादुगं होइ
॥१९० ।। अंतिमखंडस्सिसुणा जीवं संगुणिअचउहि भईऊणं। लद्धम्मि वग्गिए दसगुणम्मि मूलं हवइ पयरो ॥१९१ ॥ जीवावग्गाण दुगे मिलिए दलिए अ होइ जं मूलं । वेअड्ढाईण तयं सपिहुत्तगुणं भवे पयरो
|| १९२ ॥ एवं च पयरगणिअं संववहारेण दंसिअं तेण । किंचूणं होइ फलं अहिअंपि हवइ सुहुमगणणा ॥१९३॥ पयरो सोस्सेहगुणो होइ घणो परिरयाइसव्वं वा। करणगणणालसेहिं जंतगलिहिआउ दट्ठव्वं
॥ १९४॥ गोतित्थं लवणोभय जोअणपणनवइसहस जा तत्थ । समभूतलाउ सगसयजलवुड्ढी सहसमोगाहो ॥ १९५ ।। तेरासिएण मज्झिल्लरासिणा संगुणिज्ज अंतिमगं । तं पढमरासिभइअं उव्वेहं मुणसु लवणजले ।। १९६ ॥ हिठुवरि सहसदसगं पिहुला मूलाउ सतरसहस्सुच्चा । लवणिसिहा सा तदुवरि गाउ दुगं वड्ढइ दुवेलं ॥१९७ ॥ बहुमज्झे चउदिसि चउ पायाला वयरकलससंठाणा। जोअणसहस्स जड्डा तद्दसगुणहिटुवरि रुंदा ॥१९८ ॥ लक्खं च मज्झि पिहुला जोअणलक्खं च भूमिमोगाढा । पुव्वाइसु वडवामुहकेजुवजूवेसर भिहाणा ॥ १९९ ॥ अण्णे लहुपायाला सग सहसा अड सया सचुलसीआ। पुव्वुत्तसयंसपमाणा तत्थ तत्थ प्पएसेसु
॥ २०० ॥ कालो अ महाकालो वेलंबपभंजणे अ चउसु सुरा । पलिओवमाउणो तह सेसेसु सुरा तयद्धाऊ
॥ २०१॥
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