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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसुवग्गिछगुणिजीवा वग्गजुए मूल होइ धणुपिटुं। धणुदुगविसेससेसं दलिअं बाहादुगं होइ ॥१९० ।। अंतिमखंडस्सिसुणा जीवं संगुणिअचउहि भईऊणं। लद्धम्मि वग्गिए दसगुणम्मि मूलं हवइ पयरो ॥१९१ ॥ जीवावग्गाण दुगे मिलिए दलिए अ होइ जं मूलं । वेअड्ढाईण तयं सपिहुत्तगुणं भवे पयरो || १९२ ॥ एवं च पयरगणिअं संववहारेण दंसिअं तेण । किंचूणं होइ फलं अहिअंपि हवइ सुहुमगणणा ॥१९३॥ पयरो सोस्सेहगुणो होइ घणो परिरयाइसव्वं वा। करणगणणालसेहिं जंतगलिहिआउ दट्ठव्वं ॥ १९४॥ गोतित्थं लवणोभय जोअणपणनवइसहस जा तत्थ । समभूतलाउ सगसयजलवुड्ढी सहसमोगाहो ॥ १९५ ।। तेरासिएण मज्झिल्लरासिणा संगुणिज्ज अंतिमगं । तं पढमरासिभइअं उव्वेहं मुणसु लवणजले ।। १९६ ॥ हिठुवरि सहसदसगं पिहुला मूलाउ सतरसहस्सुच्चा । लवणिसिहा सा तदुवरि गाउ दुगं वड्ढइ दुवेलं ॥१९७ ॥ बहुमज्झे चउदिसि चउ पायाला वयरकलससंठाणा। जोअणसहस्स जड्डा तद्दसगुणहिटुवरि रुंदा ॥१९८ ॥ लक्खं च मज्झि पिहुला जोअणलक्खं च भूमिमोगाढा । पुव्वाइसु वडवामुहकेजुवजूवेसर भिहाणा ॥ १९९ ॥ अण्णे लहुपायाला सग सहसा अड सया सचुलसीआ। पुव्वुत्तसयंसपमाणा तत्थ तत्थ प्पएसेसु ॥ २०० ॥ कालो अ महाकालो वेलंबपभंजणे अ चउसु सुरा । पलिओवमाउणो तह सेसेसु सुरा तयद्धाऊ ॥ २०१॥ 336 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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