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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १०॥ ॥११॥ ॥ १२॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ।। १५ ॥ पढमे लवणो बीए कालोदहि सेसएसु सव्वेसु । दीवसमनामया जा सयंभूरमणोदही चरमो बीओ तइओ चरमो उदगरसा पढमचउत्थपंचमगा। छट्ठो वि सनामरसा इखुरसा सेस जलनिहिणो जंबुद्दीवपमाणंगुलजोअणलखवट्ट विक्खंभो। लवणाईआ सेसा वलयाभा दुगुणदुगुणा य वयरामईहिं णिअणिअदीवोदहिमज्झगणिअमूलाहिं । अळुच्चाहिं बारसचउमूलेउवरिरुंदाहिं वित्थारदुगविसेसो उस्सेह विभत्तखओ चओ होइ। इअ चूलागिरिकूडाइ तुल्ल विक्खंभकरणाहि गाउदुगुच्चाइ तयट्ठभागरुंदाइ पउमवेईए। देसूणदुजोअणवरवणाई परिमंडिअसिराहिं वेईसमेण महया गवक्खकडएण संपरित्ताहि । अट्ठारसूणचउभत्तपरिहिदारंतराहिं च अठुच्चचउसुवित्थर दुपाससक्कोसकुड्डदाराहि । पुव्वाइमहड्ढिअदेवदार विजयाइनामाहि णाणामणिमयदेहलिकवाडपरिघाइदारसोहाहि । जगईहिं ते सव्वे दीवोदहिणो परिक्खित्ता वरतिणतोरणझयछत्तवाविपासायसेलसिलवट्टे । वेइवणे वरमंडवगिहासणेसुं रमंति सुरा इह अहिगारो जेसिं सुराण देवीण ताणमुप्पत्ती । णिअदीवोदहिणामे असंखइगे सणयरीसु जंबूदीवो छहिं कुलगिरिहिं सत्तहिं तहेव वासेहिं । पुव्वावरदीहेहिं परिछिण्णो ते इमे कमसो ॥ १७ ॥ ।। १८॥ ॥ १९ ॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ૩૨૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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