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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ८४॥ ।।८८ ॥ ।। ८९ ॥ बावत्तरि चंदाणं, बावत्तरि सूरियाण पंतीए । पढमाए अंतरं पुण, चंदचंदस्स लक्ख दुर्ग जो जावइ लक्खाइं, वित्थरओ सागरो य दीवो वा । तावइआओ य तहिं, चंदासूराणं पंतीओ ॥ ८५ ॥ पनरस चुलसीइ सयं, इह ससि रवि मंडलाइं तक्खित्तं । जोयण पणसय दसहिय, भागा अडयाल इगसट्ठा ॥८६॥ ससिरविणो लवणम्मि य, जोयण सय तिण्णितीस अहियाई। असियं तु जोयणसयं, जंबुद्दीवम्मि पविसंति ॥ ८७॥ तिसिगसट्ठा चउरो, इगइगसट्ठस्स सत्तभइयस्स । पणतीसं च दु जोयण, ससिरविणो मंडलंतरयं पणसट्ठी निसढम्मिय, तत्तिय बाहा दु जोयणं तरिया । एगुणवीसं च सयं, सूरस्स य मंडला लवणे मंडलदसगं लवणे, पणगं निसढम्मि होइ चंदस्स। मंडल अंतरमाणं, जाण पमाणं पुरा कहियं ।। ९० ॥ गह रिक्ख तार संखं, जत्थेच्छसि नाउमुदहिदीवे वा । तस्ससिहि एग ससिणो, गुणसंखं होइ सव्वग्गं ॥ ११ ॥ बत्तीसट्ठावीसा, बारस अड चउ विमाण लक्खाई। पण्णास चत्त छ सहस्स, कमेण सोहम्माईसु ॥ ९२ ॥ दुसु सयचउ दुसु सयतिगमिगारसहियं सयं तिगेहिट्ठा । मज्जे सत्तुत्तरसयमुवरि तिगे सयमुवरि पंच ॥ ९३ ॥ चुलसीइ लक्ख सत्ताणवइ सहस्सा विमाण तेवीसं । सव्वग्गमुड्ढलोगम्मि इंदिया बिसट्ठि पयरेसु ॥ ९४॥ चउदिसि चउपतीउ, बासट्ठिविमाणिया पढमपयरे । उवरि इक्किक्कहीणा, अणुत्तरे जाव इक्किकं ॥ ९५ ॥ ૨૪૬ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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