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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१॥ ||२॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ पू.आ.श्री चन्द्रसूरीविरचितम् ॥ बृहत्संग्रहणी ॥ नमिउं अरिहंताई ठिइभवणो गाहणा य पत्तेयं । सुरनारयाण वुच्छं, नरतिरियाणं विणा भवणं उववायचवण विरह, संखं इगसमइअंगमागमणे। दसवाससहस्साइं, भवणवईणं, जहण्णठिई चमर बलि सार महिअं, तद्देवीणं तु तिण्णि चत्तारि। पलियाई सड्ढाई, सेसाणं नवनिकायाणं दाहिण दिवड्डपलिअं, उत्तरओ हुंति दुण्णि देसूणा । तद्देवि मद्ध पलिअं, देसूणं आउमुक्कोसं वंतरिआण जहण्णं, दसवाससहस्स पलिअमुक्कोसं । देवीणं पलिअद्धं, पलिअं अहियं ससिरवीणं लक्खेण सहस्सेण य, वासाण गहाण पलिअमेएसि। ठिइ अद्धं देवीणं कमेण नक्खत्तताराणं पलिअद्धं चउभागो, चउ अडभागाहिगाउ देवीणं । चउजुअले चउभागो, जहण्णमडभाग पंचमए दो साहि सत्तसाहिय, दस चउदस सत्तर अयर जा सुक्को । इक्किकमहियमित्तो, जा इगतीसुवरि गेविज्जे तित्तीसणुत्तरेसुं, सोहम्माइसु इमा ठिइ जिट्ठा । सोहम्मे ईसाणे, जहण्ण-ठिई पलिअमहियं च दोसाहि सत्त दस चउदस, सत्तर अयराई जा सहस्सारो । तप्परओ इक्किक्कं, अहिअं जाणुत्तरचउक्के इगतीससागराई, सव्वढे पुण जहण्णठिइ नत्थि। परिगहिआणिअराणिय, सोहम्मीसाणदेवीणं ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ || ९ ॥ ॥१०॥ ॥ ११ ॥ ૨૩૯ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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