SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ४८० ॥ ॥ ४८३ ॥ सत्येण सुतिक्खेण वि, छित्तुं भित्तुं जं किर न सक्का । तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आई पमाणाणं ॥४७९ ॥ परमाणू रहरेणू, तसरेणू अग्गयं-च वालस्स । लिक्खा जूया य जवो, अट्ठगुण विवट्ठिया कमसो अद्वैव य जवमज्झाणि, अंगुलं छच्च अंगुला पाओ। पाया य दो विहत्थी, दो य विहत्थी भवे हत्थो || ४८१ ।। चउहत्थं धणुहं पुण, दुण्णि सहस्साई गाउयं तेसिं । चतारि गाउया पुण, जोयणमेगं मुणेयव्वं ॥ ४८२ ॥ उस्सेहंगुलमेगं, हवइ पमाणंगुलं सहस्सगुणं, उस्सेहंगुलदुगुणं, वीरस्सायंगुलं भणियं पुढवि-दग अगणि-मारुय, एक्कक्के सत्त जोणिलक्खाओ। वण पत्तेय अणंते, दस चोद्दस जोणिलक्खाओ ॥४८४ ॥ विगलेंदिएसु दो दो, चउरोच उरो य नारय-सुरेसु । तिरिएसु हुँति चउरो, चउदस लक्खाओ मणुएसु ॥ ४८५ ॥ बारस सत्तय तिण्णि य, सत्तय कुलकोडि सय सहस्साइं। नेया पुढवि दगागणि, वाऊणं चेव परिसंखा ॥४८६॥ कुलकोडिसयसहस्सा,सत्तट्ठ नव य अट्ठवीसं च। बेंदिय-तेंदिय, चउरिदिय-हरियकायाणं ॥ ४८७ ॥ अद्ध तेरस बारस, दस दस नव चेव सयसहस्साई। जलयर पक्खि चउप्पय, उरग भुअसप्पाण कुलसंखा ॥ ४८८॥ छव्वीसा पणवीसा सुरनेरइयाण सयसहस्साई । बारस सय सहस्साइं, कुलकोडीणं मणुस्साणं ॥ ४८९॥ एगा कोडाकोडी, सत्ताणउई भवे सय सहस्सा। पण्णासं च सहस्सा, कुलकोडीणं मुणेयव्वा ॥ ४९० ॥ ૨૩૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy