________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
।। ३५८॥
थाणए थणए य तहा, मणए वणए य होइ नायव्वो। घट्टे तह संघट्टे, जिब्भे तह अवजिब्भए चेव लोले लोलावते, तहेव घणलोलए य होइ बोधव्वे । बीयाए पुढवीए, एक्कारस नरइंदया एए
॥ ३५९ ॥ तत्तो तविओ तवणो य, तावणो पंचमो निदाघोय य। छट्ठो पुण पज्जलिओ, उज्जलिओ सत्तमो निरओ ॥३६० ॥ संजलिओ अट्ठगओ संपज्जलिओ य नवमओ भणिओ। तइयाए पुढवीए एए नव हुंति निरइंदा
॥३६१ ॥ आरे तारे मारे, वच्चे तमए य होइ नायव्वो। खाडखडे, य खडखडे, इंदयनिरया चउत्थीए ॥ ३६२॥ खाए तमए य तहा, झसे य अंधे य तह य तिमिसे य । एए पंचम पुढवीए पंचम निरइंदया हुंति
॥ ३६३॥ हिमवद्दल लल्लक्को, तिण्णिओ निरइंदीयाओ छट्ठीए एक्को य सत्तमाए बोधव्वो अपइट्ठाणो ॥ ३६४॥ सत्तममहिए एक्को, पयरो तत्तो य उवरि पुढवीसु। इग दुग तिगाइ वुड्डी जा रयणाए अउणवण्णा || ३६५ ।। एक्केको य दिसासु, मज्झे निरओ य अपइट्ठाणो। विदिसा निरय विहूणं, तं पयरं पंचगं जाण || ३६६ ॥ इट्ठ पयरस्स संखा, अट्ठगुणा ति रहिया भवे संखा । पढमो मुहमंतिमओ, भूमि तेसिं सुणसु संखं सीमंतय नरइंद य, पढमे पयरम्मि होइ संखाओ। तिणि सय अउणनउया, निरया तह अंतिमे पंच ॥ ३६८ ॥ मुह भूमि समासद्धं, पयरेहि गुणं तु होइ सव्वधणं, तेवण्ण हिया छस्स य, नव चेव सहस्स सव्वधणं ॥३६९।।
।। ३६७॥
૨૨
For Private And Personal Use Only