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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १४२ ॥ ॥ १४३ ।। || १४४ ॥ ।। १४५ ॥ ॥ १४६ ॥ ॥ १४७ ॥ वर्ल्ड वट्टस्सुवरिं, तंसं तंसस्स उवरिमं होइ । चउरंसे चउरंसं, उटुं च विमाण सेढीओ कप्पस्स णुपुव्वीए, आइम पयरंतिमं च गणइत्ता। मुह भूमि समासद्धं, पयरेहिं गुणं तु सव्वधणं दोण्णि सय अउणपण्णा, सत्ताणउयं सयं च बोधव्वं, अउणापण्णं च सयं, सयमेगं पण्णवीसं च पंचुत्तर सय मेगं, अउणाणउई य होइ बोधव्वा।। तेवत्तरि सगवण्णा, ईयालीसा य हिट्ठिमए अउणत्तीसा य भवे, सत्तरसय पंच चेव आइग्छ । कप्पेसु पत्थडाणं, बोधव्वा उड्ढलोगम्मि सग पयरा रूवूणा, चउगुणिया सोहियाहि मूलिण्णा । जं तत्थ सुद्धसेसं, इच्छिय कप्पस्स सा भूमी एगाहिय दोण्णिसया, तेवण्णसयं सयं चउणतीसं। तत्तो नवाहिय सयं, तिनवइ सत्तत्तरी चेव एगट्ठी पणयाला, तेत्तीसा एकवीस नव चेव । कप्पेसु पत्थडाणं, भूमीओ हुंति नायव्वा दो चेव सहस्साई, नव चेव सयाइं पंचवीसाइं। आवलियासु विमाणा, सोहम्मीसाणकप्पेसु अउणसट्ठि सय सहस्सा, सत्ताणउई तहा सहस्साई। नवयसया संपुण्णा, हवंति पुप्फावकिण्णाई दो चेव सइस्साई, सयमेग चेव होइ नायव्वं, आवलियासु विमाणा, सणंकुमारे य माहिदे दस नव य सय सहस्सा, सत्ताणउई तहा सहस्साइं, नवयसया संपुण्णा, हवंति पुप्फावकिण्णाणं ।। १४८ ॥ ।। १४९ ।। ॥ १५० ॥ ॥१५१ ॥ ।। १५२॥ ।। १५३ ॥ ૨૦૯ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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