SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ ४३ ॥ ॥ ४४ ॥ सत्तेव अपज्जत्ता, सामी सुहुमा य बायरा चेव । विगलिंदिआ उ तिण्णि उ, तह य असण्णी (अ) सण्णी ॥ ४२ ॥ नाणंतराय तिविहमवि, दससु दो हुंति दोसु ठाणेसु । मिच्छासाणे बीए, नव चउपण नव य संतंसा मिस्साइ नियट्टीओ, छ च्चउ पण नव य संतकम्मंसा । चउबंध तिगे चउपण, नवंस दुसु जुअल छस्संता उवसंते चउ पण नव, खीणे चउरुदय छच्च चउ संता । अणिआउ अ गोए, विभज्ज मोहं परं वुच्छं चउ छस्सु दुणि सत्तसु, एगे चउगुणिसु वेअणिअभंगा । गोए पण चउ दो तिसु, एगट्ठसु दुण्णि इक्कम्मि अट्ठच्छाहिगवीसा, सोलस वीसं च बारस छ दोसु । दो चउसु तीस इक्कं, मिच्छाइसु आउए भंगा गुणठाणएसु अट्ठसु, इक्किक्कं मोह बंधठाणं तु । पंच अणिअट्टिठाणे, बंधोवरमो परं तत्तो ॥ ४५ ॥ ॥ ४६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्ताइ दस उ मिच्छे, सासायणमीसए नवुक्कोसा । छाई नव उ अविर, देसे पंचाई अव विरए खओवसमिए, चउराई सत्त छच्चऽपुव्वम्मि । अनि अट्टिबायरे पुण, इक्को व दुवे व उदयंसा एगं सुहुमसरागो, वेएइ अवेअगा भवे सेसा । भंगाणं च पमाणं, पुव्वुद्दिद्वेण नायव्वं इक्क छडिक्कारिक्का - रसेव इक्कारसेव नव तिण्णि । एए चउवीसगया, बार दुगे पंच इक्कम्मि बारसपणसट्ठिसया, उदयविगप्पेहिं मोहिआ जीवा । चुलसीई सत्तत्तरि, पर्यावदसएहिं विण्णेआ १४ For Private And Personal Use Only ॥ ४७ ॥ ॥ ४८ ॥ ॥ ४९ ॥ ॥ ५० ॥ ॥ ५१ ॥ ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy