SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। १७॥ ॥ १९॥ ॥ १९॥ ।। २०॥ ॥ २१ ॥ वेयगसम्मेण विणा तेरस जा सुहमसंपराओत्ति । ति च्चिय उवसमखीणे चरित्तविरहेण बारस उ खाओवसमगभावाण कित्तणा गुणपए पडुच्च कया। ओदइयभावमिण्हेिं ते चेव पडुच्च दंसेमि चउगइयाई इगवीस मिच्छे साणे य हुंति वीसं च । मिच्छेण विणा मोसे इगुणीसमनाणविरहेण एमेव अविरयम्मी सुरनारयगइविओगओ देसे । सत्तरस हुंति ति च्चिय तिरिगइअस्संजमाभावा पण्णरस पमत्तम्मि अपमत्ते आइलेसतिगविरहा। ति च्चिय बारस सुक्केगलेसओ दस अपुव्वम्मि एवं अनियट्टिम्मि वि सुहमे संजलणलोभमणुयगई। अंतिमलेसअसिद्धत्तभावओ जाण चउभावा संजलणलोभविरहा उवसंतक्खीणकेवलीण तिगं । लेसाभावा जाणसु अजोगिणो भावदुगमेव अविरयसम्मा उवसंत जाव उवसमगखइयगा सम्मा। अनियट्टी उवसंतो जाव उवसामियं चरणं खीणम्मि खइयसम्मं चरणं च दुगं पि जाण समकालं । नव नव खइगा भावा जाण सजोगे अजोगे य जीवत्तमभव्वत्तं भव्वत्तं पि हु मुणेसु मिच्छम्मि। साणाई खीणंतो दुण्णि अभव्वत्तवज्जा उ सज्जोगिअजोगम्मि जीवत्तं चेव मिच्छमाईणं । ससभावमीलणाणो भावं मुण सण्णिवायं तु ।। २२॥ ॥ २३ ॥ ॥ २४॥ ॥ २५ ॥ ।। २६ ॥ ॥ २७॥ ૧૨૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy