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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ९४२ ॥ ।। ९४३ ॥ ॥ ९४४॥ ॥ ९४५ ॥ ॥ ९४६ ॥ ॥ ९४७॥ नो लब्भइ भागाणं पउरत्ता न विय हेट्ठिमे बंधे । तेवीसइमे तत्थ य एयासिं बंधविरहाओ ते विय तेवीसपणवीसईयबंधा उ सम्मदिट्ठिस्स। न भवंति देवपज्जत्त-मणुयपाओगबंधस्स . बंधग्गत्ताओ तस्स य तो एसि पि पंचवीसाए । पयडीणं भणियकमा तेवीसा पण्णवीसाए बज्झमाणेणं समगं उक्कसजोगो उ सत्तविहबंधी। उक्किटुं पकरेई मिच्छद्दिट्ठी जिओ बंधं इय उत्तरपयडीणं उक्किट्ठपएसबंधसामित्तं । वुत्तं संपइ इयरं पयडीणं बंधसामित्तं कमपत्तं पि य मोत्तुं वइचित्तत्ताओ गंथकाराणं । भणिऊणं केरिसओ जंतू उक्कसपएसाणं बंध पकरइ तह केरिसो य इयराण कुणइ बंधति । सामण्णलक्खणं इह य ताव दुण्हं पि भणेइ सण्णी गाहा सुगमा अह पत्थुय उत्तराण पयडीणं । पभणइ य जहण्णबंध-सामित्तं घोलगाहाए घोलणजोगो परियत्त-माणजोगो असण्णिओ जीवो। जहण्णपएसा बंधइ चउपयडी ता उ पुण एया नरगदुगं नरयाउं देवाउं तह य पढविमाईया। चउरिदियावसाणा देवेसुं तह य नरएसुं उप्पत्तिअभावाओ इय पयडिचउक्कयं न बंधंति । असण्णिऽपज्जतो तह संकेसविसुद्धिविरहा उ एयं पयडिचउक्कं नो बंधइ तेण उच्चरियनाया। असण्णी पज्जत्तो सुत्तेऽणुत्तो वि दट्ठव्वो ॥ ९४८॥ ॥ ९४९ ॥ ॥ ९५० ॥ ॥ ९५१॥ ।। ९५२ ।। ॥ ९५३॥ १०3 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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