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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ८२२ ॥ ॥ ८२३॥ ॥ ८२४ ॥ ॥ ८२५ ॥ || ८२६ ॥ ॥ ८२७ ॥ ता तब्भागो अहिओ लब्भइ एत्थं एओ इमो गहिओ। जेणं मिच्छो मिच्छं बंधेइ पढमिगकसाया सासो पढमकसाए बंधइ तेणं इमे उ नो गहिया । मीसदिट्ठिस्स ओ भणियं अग्गहणे कारणं पुव्वं देसविरयाइया पुण बीयकसायाओ नेव बंधंति । इय सेसजियच्चाएण सम्मदिट्ठी इहं गहिओ तइयकसायचउक्कस्स देसविरओ उ जोगउक्कोसो। सत्तविहबंधगो संविहेइ उक्कोसगं बंधं दुइयकसायाण अबंधगो उ एसो अओ उ तब्भागो। एत्थं अहिओ लब्भइ देसविरयस्स उ तो गहणं अविरयसम्माईया अपुव्वकरणंतया उ बंधंतो। वि दुगुच्छभए उक्कोसजोगया उक्कसं बंधं बंधंति मिच्छभागो लब्भइई सम्मदिविणो गहणं । नियजाइत्ता होई कसायभागो कसायाणं मिच्छद्दिट्ठी मिच्छस्स बंधगो नो लहेइ तब्भागं । इय तस्सागहणं मिस्स-सासणे पुण लहंतेवं मिच्छत्तीयं भागं नवरं इह वक्खमाणनीईए। तेसि उक्कडजोगो नो लब्भइ तेण ते एत्थ नो भणिया अनियट्टिपभीईया भयदुगुंछपयडीओ। नो बंधतीह तओ अपुव्वकरणंतया भणिया संजलणम्मि य कोहस्सऽनियट्टी पुरिसबंधवुच्छेए । संजलणं कोहाईचउक्कयं किर पबंधंतो उक्कसजोगम्मि ठिओ पएसबंधं तु उक्कसं कुणइ । मिच्छत्ताइमबारसकसायभागो तहिं अहिओ ॥ ८२८॥ ।। ८२९ ॥ ।। ८३० ॥ ॥ ८३१ ॥ ॥ ८३२॥ ॥ ८३३ ॥ 63 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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