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जइ वि विउसाण न मणो- रंजगमेयं भविस्सइ तहावि । मत्तो वि मंदमइणो जे तेसिमुवग्गहं काही
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जीवा सुसिणो, तं सिवम्मि, तं संजमेण, सो देहे, I सो पिडेण, सदोसो सो पडिकुट्ठो, इमे ते य सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाए दोसाओ । दस एसणाए दोसा संजोयणमाइ पंचेव
सोहितो य इमे तह जज्ज सव्वत्थ पणगहाणीए । उस्सरसंतता (?) यरिऊ जह चरणगुणा न हायंति सीसो पुच्छइ "भयवं ! नायव्वा सा कहं पणगहाणी ? " | गुरुराह "सुणसु सुंदर! जह भणिया जिणवरिंदेहि समयरकयविमलमइणा(णो), जइणो सुद्धं जिणिदमयरइणो । पिंड सेज्जं वत्थं पत्तं च पुरा गवेसंति सुद्धा संपत्तीए पंचगच्छित्तलच्छियधिईए । तदसंभवे सदसगं तदभावे पंचदसगजुयं तदसइ वीसगसहियं तव्विरहे भिन्नमाससंजुत्तं । तस्ससइ सलहुमासग - मेवं तरतमविभागेण
ता नेयं जा च्छग्गुरु मुच्चिस्सं जेण सा तवोभूमी | छत्तीसपयनिबद्धा विण्णेया पणगपणिहाणी
तत्तोच्छेओ मूलं अणवटुप्पो य होइ पारिंची। तावत्थोयं पढमं सेविज्जइ लहु गुरु पच्छा जया वट्टियव्वं न हु जयणा जेण भंजए अंगं । एसा जिणाण आणा ताएच्चिय सुज्झए जीवो पुणरवि भइ विणेओ "पच्छित्तं कम्मि कम्मि दोसग्मि । कयरं कयरं भयवं ! भणियं समयम्मि ?" गुरुराह
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