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॥ १४ ॥
इत्थं पुण चउभंगो अरिहो अरिहम्मि दलयइ कमेण । आसेवणाइणा खलु मंदं दव्वाइ सुद्धीए
॥९॥ कस्सालोयण १ आलोयओ य २ आलोइयव्वयं चेव ३।। आलोयणविहि ४ मुवरि तद्दोसगुणे य ६ वोच्छामि ॥१०॥ अक्खंडियचारित्तो वयगहणाओ य जो भवे निच्चं । तस्स सगासे दंसण-वयगहणं सोहिगहणं च
॥ ११॥ आयारवमाहार ववहारोऽवीलए पकुव्वे य । अपरिस्सावी निज्जव अवायदंसी गुरू भणिओ ॥ १२॥ आगम सुय आणा धारणा य जीयं च होइ ववहारो। केवलिमणोहि-चउदस-दस-नवपुव्वाइं पढमोत्थ ॥ १३ ॥ कहेहि सव्वं जो वुत्तो जाणमाणो विगूहइ । न तस्स दिति पच्छित्तं बिति अण्णत्थ सोहय न संभरइ जो दोसे सब्भावा न य मायया । पच्चक्खी साहए ते उ माइणो उ न साहई
॥ १५ ॥ आयारपगप्पाई सेसं सव्वं सुयं विणिद्दिटुं । देसंतरट्ठियाणं गूढपयालोयणा आणा
॥ १६ ॥ गीयत्थेणं दिण्णं सुद्धि अवहारिऊण तह चेव । दितस्स धारणा सा उद्धियपयधरणरूवा वा
॥ १७॥ दव्वाइ चितिऊणं संघयणाईण हाणिमासज्ज । पायच्छित्तं जीयं रूढं वा जं जहिं गच्छे
॥ १८ ॥ अग्गीओ नवि जाणइ सोहि चरणस्स देइ ऊणहियं । तो अप्पाणं आलोयगं च पाडेइ संसारे
|| १९ ॥ तम्हा उक्कोसेणं खित्तम्मि उ सत्तजोयणसयाई। काले बारसवरिसा गीयत्थगवेसणं कुज्जा
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