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जो संतावर अणुदियहं छव्विहजीवनिकाउ । नरयनिबंधणकम्मर बलि किज्जउ सो काउ
[ दण्ड दमवि म] णु वसि करहु धरि संजमि अप्पाणु । मोह महाबलु निज्जिणिहिं जिम पावहि निरवाणु
समह भूसण गवसण संजमभंजरि एह । [[सिरि] महेसरसूरि गुरु कण्णि कुणंत सुणेह
पू. आ. श्री मानतुंगसूरिविरचितम् ॥ जयन्तीप्रकरणम् ॥
नमिय नमिरामरेसरसिरसेहरमणिमऊहविच्छुरियं । वीरचरणारविन्दं जयन्तियापगरणं वोच्छं पुच्छइ कहावसाणे गुरुयत्तं कह कुणन्ति जिण जीवा ? | वी भणइ जयन्ती अट्टारस पावद्वाणेहिं
पाणिवह मुसावाए अदत्त मेहुण परिग्गहे । कोहे माणे माया लोभे पिज्जे दोसे य कलहे य
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अब्भक्खाण अरइ पेसुण्णे तह परपरिवाए । मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले य अट्ठारे
भंते भव्वत्तं किं सभावओ ? वावि होइ परिणामा ? साहावियं जयन्ति ! भवत्तं नेय परिणामा
भवसिद्धिया भंते! जइ सिज्झिस्संति तो भवे लोओ। भवसिद्धिएहि रहिओ, न भवइ स जयंति ! नायाओ
सयलागासपएसा सेढिपरमाणुमित्तखंडेहि । समए समए हीरइ अणंतउस्सप्पिणीकालं
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