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गाढपरिग्गहगहगहिउ नरु हारइ अपवागु । मिल्हि परिग्गहदुव्वसणु सिवसुहकारणि लग्गु
॥९॥ पंचासवविरमणु करहि करहि म निग्घण पाउ। सिद्धिपुरंधिहि उवरि जइ तुज्झ पइट्टइ भाउ
॥१०॥ कक्कसि फरसि म उब्विअसि निरु कोमलइ म रज्जु । मज्झत्थिउ [इ] वित्थरहि जिअ जइ मणि निव्वुइकज्जु ॥ ११ ॥ रसणिदिउ दुद्दम दमिउ रसि रसि गिद्धउ जेण । अवर य इंदिय विसयगय लीलई निज्जिय तेण ॥१२॥ गंधसुगंधिइं रइ करइं दुग्गंधिई संताउ। घाणिदियकयउक्करसि जीव म बंधइ पाउ
॥ १३ ॥ जे जिणनाहह मुहकमलअवलोअणकयतोस । धण्ण तिलोअहं लोअणई मुहमंडणपर सेस
॥ १४॥ पररमणी जे रूवभरि पिक्खिवि जे विहि [ह] संति। रागनिबंधण ते नयण जिण जम्म वि नहु हुन्ति ॥ १५ ॥ जीव म रंजहि मणरयण सुणवि मणोहर गेउ। खरनिट्ठरसद्दावसरि मा करि मणि उव्वेउ
॥१६॥ गय मय महुअर झस सलह नियनियविसयपसत्त । इक्किक्केण इ इन्दियण दुःख निरंतर पत्त
॥ १७ ॥ इक्किणि इंदिय मुक्कलिण लब्भइ दुक्ख सहस्स । जसु पुण पंचइ मुक्कला कह कुसलत्तणु तस्स ॥१८॥ इंदियसुक्खि मे रई करहु संभावहिं अपवग्गु । जिअ खणभंगुरविसयसुहमग्गि अलग्गि म लग्गु ॥ १९ ॥ वयरपरंपर संघडइ बहु उव्वेय करेइ । कोउ वियंभिउ भंति नहु जीवहं दुग्गइ नेइ
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