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असणं ओयण-सत्तुग-मुग्ग-जगाराइ खज्जगविहीए। खीराइ सूरणाई मंडगपभिई य विण्णेयं
॥ २२॥ पाणं सोवीर-जवोदगाइ चित्तं सुराइयं चेव । आउक्काओ सव्वो कक्कडगजलाइयं च तहा
॥ २३॥ भत्तोसं दंताई खजूरं नालिकेर-दक्खाई। कक्कड-अंबग-फणसाइ बहुविहं खाइमं होइ दंतवणं तंबोल चित्तं तुलसी कुहेडगाईयं । महु-पिंपलि-सुंठाई अणेगहा साइमं होइ
।। २५॥ फासियं पालियं चेव सोहियं तीरियं तहा। कित्तियमाराहियं चेव एरिसम्मि पईयव्वं
॥ २६॥ आगारेहि विसुद्धं जं गहियं फासियं तयं नेयं । तह पालियं तु भण्णइ सम्मं उवओगपडियरियं ॥ २७ ॥ गुरुदत्तसेसभोयणसेवणयाए य सोहियं जाण । पुण्णे वि थेवकालावत्थाणे तीरियं जाण
॥ २८॥ भोयणकाले अमुगं पच्चक्खायं ति भुज्ज कित्तियं । एएहिं आगारेहिं सम्मं आराहियं होइ
॥ २९ ॥ वयभंगे गुरुदोसो, थेवस्स वि पालणा गुणकरी उ। गुरु लाघवं च नेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा || ३०॥ दुद्धं, दहि, नवणीयं, घयं, तहा तिल्लमेव, गुड, मज्जं । महु, मंसं, चेव तहा ओगाहिमगं च दसमाओ ॥ ३१ ॥ गो-महिसु -ट्टिपसूणं एलगखीराणि पंच, चत्तारि। दहिमाइयाणि जम्हा उट्टीणं ताणि नो हुंति
॥ ३२ ॥ चत्तारी हुति तिल्ला तिल -अयसि -कुसुंभ-सरिसवाणं च। विगईओ सेसाणं डोलाईणं न विगईओ
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