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उत्तारिउण जलणम्मि खिवंति तुट्ठा, जो नत्थ हेउ तस्स जलं पि दिति
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कविचक्रचक्रवर्ति पू.आ. श्रीजयशेखरसूरिविरचितम्
॥नवतत्त्वप्रकरणम् ॥ जीवाऽजीवा पुण्णं, पावासवसंवरो य निज्जरणा । बंधो मुक्खो य तहा, नवतत्ता हुंति नायव्वा
॥ १ ॥ चउदस चउदस बाया-लीसा बासीय हुंति बायाला । सत्तावण्णं बारस, चउ नव भेया कमेणेसिं
॥ २॥ सुहुमा बायर बेइं - दिया य तेइंदिया य चउरिंदी। असण्णी सण्णी खलु, चोद्दस पज्जत्तपज्जत्ता
॥ ३ ॥ धम्माधम्मागासा, दव्वा देसप्पएस तितिभेया। गइठिइअवगाहगुणा, कालो परिवत्तणारूवो पूरणगलणसहावो, खंधा देसप्पएसपरमाणू। पुग्गलकाओ चउहा, चउदस भेओ इय अजीवो सायं सुरनरतिरियाऊ, सुरनराणं गई य अणुपुव्वी ओरालविउव्वाहार-तेअकम्मइग पण देहा
॥६॥ आइतितणूणुवंगा, पणिदि सुहवण्णगंधरसफासा । संघयणवज्जरिसहं, समचउरंसं च संठाणं तस बायर थिर पत्तेय, पज्जआइज्जसुभगसुभसुसरं । जस तित्थंकर निम्माण, अगुरुलहु-आयवुज्जोयं परघा ऊसास सुभखगइ, उच्चं इय पुण्णतत्त बायाला। पावम्मि मइसुओही-मणपज्जव केवलावरणं
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