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||१०॥
॥ १२॥
परिहरि लोयपवाहु पयट्टिउ विहिविसउ पारतंति सहु जेण निहोडि कुमग्गसउ। दंसिउ जेण दुसंघ-सुसंघह अंतरउ वद्धमाणजिणतित्थह कियउ निरंतरउ जे उस्सुत्तु पयंपहि दूरि ति परिहरइ जो उ सुनाण-सुदंसण-किरिय वि आयरइ । गड्डरिगामपवाहपवित्ति वि संवरिय जिण गीयत्थायरियइ सव्वइ संभरिय
चेईहरि अणुचियई जि गीयइं वाइयइ तह पिच्छण-थुइ-थुत्तई खिड्डइ कोउयइ । विरहंकिण किर तित्थु ति सव्वि निवारियइ तेहि काहिं आसायण तेण न कारियइ लोयपवाहपयट्टिहि कोऊहलपिइहि कीरन्तइ फुडदोसइ संसयविरहियहि । ताई वि समइनिसिद्धइ समइकयत्थियहि धम्मत्थीहि वि कीरहिं बहुजणपत्थियहि जुगपवरागमु मण्णिउ सिरिहरिभद्दपहु पडिहयकुमयसमूहु पयासियमुत्तिपहु। जुगपहाणसिद्धतिण सिरिजिणवल्लहिण पयडिउ पयडपयाविण विहिपहु दुलहिण विहिचेईहरु कारिउ कहिउ तमाययणु तमिह अणिस्साचेइउ कयनिव्वुझ्नयणु । विहि पुण तत्थ निवेइय सिवपावणपउण जं निसुणेविणु रंजिय जिणपवयणनिउण
॥ १३ ॥
॥ १५ ॥
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