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॥७७॥
॥ ७८ ॥
हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्डो, धावमाणो अ अंधओ
।। ७५ ।। संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हु (?णो) एगचक्केण रहो पयाई । अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संप (गट्ठा)उत्ता नगरं पविट्ठा
॥ ७६ ॥ सुबहु पि सुअमहीअं, किं काही चरणविप्पहीणस्स? । अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडीओ अप्पं पि सुअमहीअं, पयासगं होई चरणजुत्तस्स । इक्कोवि जह पईवो, सचक्खुस्स पयासेई दसण वय सामाइय, पोसह पडिमा अबंभ सच्चित्ते। आरंभ पेस उद्दिट्ठ-वज्जए समणभूए अ
॥ ७९ ॥ संपत्तदंसणाई, पईदियह जइजणाओ निसुणेई । सामायारिं परमं, जो खलु तं सावगं बिति जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, भारस्स भागी न हु सुग्गईए ॥८१ ॥ तहिं पंचिंदिआ जीवा, इत्थीजोणीनिवासिणो। मणुआणं नवलक्खा, सव्वे पासई केवली
॥ ८२॥ इत्थीणं जोणीसु, हवंति बेइंदिया य जे जीवा । इक्को य दुण्णि तिण्णिवि, लक्खपुहुत्तं तु उक्कोसं ॥ ८३॥ पुरिसेण सहगयाए, तेसिं जीवाण होइ उद्दवणं । वेणुअदिटुंतेणं, तत्ताइ(य)सिलागनाएणं
॥८४ ॥ इत्थीण जोणिमझे, गब्भगयाइं हवंति जे जीवा। उप्पज्जंति चयंति य, समुच्छिमा असंखया भणिया ॥८५ ॥
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