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धणगिरिणो नंदाए, तणओ णग(र) णहयरिंदपहुपणओ। पढमुप्पत्ति पयंपि व, संवेग्गसिरीएसंविग्गो
॥२३॥ सिरि अज्जसीहगिरिणो, गुरुणा विहिओ गुणाणुरागेणं । सेस जईणं लहुओ, विज्जो गुरु नाणदाणेणं
॥ २४ ॥ उद्धरिया जेण पयाणु-सारिणा गयणगामिणी विज्जा । सुमहा पयण्ण-पुव्वाओ, सव्वहा पसमरसिएणं ॥ २५ ॥ सुरराय-चाय-विज्जमभमुहा धणुमुक्क-नयणबाणाए । कामग्गिसमीरण-विहिय पत्थणा वयण-घडणाए ॥ २६ ॥ लढुंग पईट्ठाए, सिद्धि-सुयाए विसिट्ठ-चिट्ठाए। गुणगणसमणाओ जेसि दंसणुक्कंठिय मणाए
॥ २७॥ निय जणय दिण्ण धण-कणग-रयण-रासीए जो न कण्णाए । तुच्छं पि मुच्छिओ जोव्वणेवि धणियं गुणट्ठाए ॥ २८ ॥ जलण-गिहाओ मोहसरीए कुसुमाणि जेण आणेउं । तच्च नीयाणमाणो, मलियो संपुष्णई विहिया
॥ २९ ॥ दुब्भिक्खम्मि दुव्वालस वारसीय सीयमाण संघम्मि। विज्जा बलेणमाणिय-मण्णं जेणण्ण छिण्णाओ ॥३०॥ नमह दस पुव्वधरं, धम्मधरा धरणसेसमणिविरियं । सिरि वइरसामिसूरिं, वंदे थिरयाइ मेरुगिरि । ॥ ३१ ॥ निय-जणणि-वयण-करणम्मि उज्जओ दिट्ठिवाय-पढणत्थं । सुगुरु-समीवम्मि गओ, ढड्डर सद्दाणुमग्गेणं
॥ ३२ ॥ सद्दाणुसारओ विहियं, सयलमुणिवंदणीय जो गुरुणा । अकयाणुवंदणो सावयस्स एवं समणु भणिमो ॥ ३३॥ को धम्म गुरु तुम्हाण-मेत्थ तेणावि विणयपणएणं । गुरुणो निदंसिओ सो, ढड्डर सद्दो वियड्डेणं
॥ ३४ ॥
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