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पू. आ. श्रीजिनवल्लभसूरिविरचितम् ॥ श्रावकव्रतकुलकम् ॥ वीरं नमिठं सम्मत्तमूलमंगीकरेमि गिहिधम्मं । देवो जिणो पमाणं, तव्वयणं मह गुरू गीया धम्मत्थमण्णतित्थे, न करे तवण्हाणदाणपिंडाई | चिइवंदणं च इक्कं, सक्कत्थएण वि सया काहं पाणिवह मुसावाए - अदत्त- मेहुण- परिग्गहे चेव । दिसि - भोग-दंड- समइय- देसे - तह पोसहविभागे थूलाइ पाणिघायं, अलियं कण्णाइगोयरं सव्वं । अदत्त दुविह- तिविहेण, खत्तखणणाइणो नियमो परदारं वज्जेमी, सयणाइ -सदार तह य कारवणं । दुब्भासहासकलहाइ, मुक्कलं बंभवयविसयं घणघण्णखित्तवत्थू रुप्पसुवण्णे य चउप्पए दुपए । कुविए परिग्गहे नवविहे य इच्छापमाणमिणं पंचाससहस्सदम्मा, धणम्मि मह चउव्विहम्मि मुक्कलया । धणे मूढग दुसयं, तिल्लघयाणं घडा सट्ठी इकं खित्तं घर चारि, हट्ट चउरो य करह चालीसा । गो-वसह तह य तीसा, चउरो सगडा य अस्सा य वाहिणी दासा दासी, दो सिरि पट्टणाउ नयराउ । जोयणसड्ढसयं चउदिसासु-पंचास जलमग्गे जो दो उड्ड तह, धणुह सयं होइ अहे य मग्गम्मि । निसि असणखाइमे न हु जिमेसया मुत्तु घरणाई महु- मक्खण- सिंघाडय - गोरसजुयविदलजाणियमणंतं । अण्णायफल - वयंगणयं, चुंबरिमवि न भुंजामि
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