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गिहिणो गिहत्थमूले वयाइं पडिवज्जओ महादोसो। पंचेव सविखणो जं पच्चक्खाणे इमे भणिया अरिहंत सिद्ध साहू देवो तह चेव पंचमो अप्पा। तम्हा गिहत्थमूले वयगहणं नेय कायव्वं जं सच्छंदमईए रएसु उच्चारिएसु पुण तेसि ।। जइ कह वि होइ खलणा ता कह सुद्धी गुरूहि विणा लज्जाइ गारवेण इ बहुस्सुयमएण वावि दुच्चरियं । जे न कहंति गुरूणं न हु ते आराहगा हुंति कच्छमाईकिरिया सडाणं जाव अणसणं भणिया। साहुवयणेण किज्जइ अण्णो पुण किं वहइ गव्वं ? संपइ भणंति केई जीवा पावंति अस्सुयं धम्म । सच्चं पुण ते मूढा सुयपरमत्थं न याणंति पत्तेयबुद्धिलाभेण जाईसरणेण ओहिनाणेण । दट्टण पुव्वसूरि तो पच्छा लहइ जिणधम्म तत्थ य साहुपसाओ नेयव्वो इत्थ सत्थगारेहिं । सच्छंदमईणं पुण वड्डइ कुमई न संदेहो संपइ केई सड्ढा गाढं किरियं कुणंति गुरुरहिया । न निस्साई कुणंते हीलंता हुंति अइमूढा कुगुरूणं परिहारे सुगुरुसमीवे कियाइ किरियाए । जायइ सिवसुहहेऊ सुसावयाणं न संदेहो सूरेण विणा दिवसं अब्भेण विणा न होइ जलवुट्ठी। बीएण विणा धण्णं न तहा धम्मं गुरूहि विणा छसु अरएसुं जइ वि हु सव्वगईसुं पि लब्भए सम्म । धम्मं तु विरइरूवं लब्भइ गुरुपारतंतेहिं
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